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समवायांग सूत्र
से मन वर्गणा, वचन वर्गणा और काय वर्गणा के पुद्गलों का अवलम्बन लेकर आत्मप्रदेशों में होने वाले परिस्पंद, कम्पन या हलन चलन को भी योग कहते हैं। अवलम्बन के भेद से इसके तीन भेद हैं - मन, वचन और काया । इनमें मन के चार, वचन के चार और काया के सात इस प्रकार कुल १५ भेद हो जाते हैं। पण्णवणा सूत्र के १६ वें पद में योग के स्थान पर प्रयोग शब्द प्रयुक्त किया गया है। इन्हीं को प्रयोगगति भी कहा जाता है। यहाँ तेरहवें बोल में गर्भज तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय के तेरह प्रयोग ही बतलाये गये हैं। क्योंकि तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय में आहारक प्रयोग और
आहारक मिश्र प्रयोग ये दो प्रयोग नहीं पाये जाते हैं। . . सौधर्म और ईशान अर्थात् पहला और दूसरा देवलोक दोनों अर्द्धचन्द्राकार हैं और दोनों मिलने से पूर्ण चन्द्राकार बनते हैं। इन दोनों के नीचे तेरह प्रस्तट (पाथड़े) आये हुए हैं। तेरहवें पाथड़े में 'सौधर्मावतंसक और ईशानावतंसक' (अवतंसक-आभूषण रूप) विमान आये हुए हैं।
चार कोस का एक योजन होता है। एक योजन के कल्पना से ६१ भाग किये जायं तो ६१ भाग में से ४८ परिमाण सूर्य का विमान लम्बा चौड़ा है और चौबीस भाग परिमाण ऊंचा है। चन्द्रमा का विमान ५६ लम्बा चौड़ा है और ३८. भाग ऊंचा है।
- चौदहवां समवाय । चउद्दस भूयग्गामा पण्णत्ता तंजहा - सुहमा अपज्जत्तया, सुहुमा पज्जत्तया, बायरा अपज्जत्तया, बायरा पज्जत्तया, बेइंदिया अपज्जत्तया, बेइंदिया पज्जत्तया, तेइंदिया अपज्जत्तया, तेइंदिया पज्जत्तया, चउरिंदिया अपज्जत्तया चउरिंदिया पज्जत्तया, पंचिंदिया असण्णी अपज्जत्तया, पंचिंदिया असण्णी पज्जत्तया, पंचिंदिया सण्णी अपज्जत्तया, पंचिंदिया सण्णी पज्जत्तया । चउद्दस पुव्वा पण्णत्ता तंजहा -
उप्पायपुव्वमग्गेणियं च, तइयं च वीरियं पुव्वं । अत्थिणत्थिपवायं, तत्तो णाण प्पवायं च ॥ सच्चप्पवाय पुव्वं, तत्तो आयप्पवाय पुव्वं च । कम्मप्पवाय पुव्वं , पच्चक्खाणं भवे णवमं ।। विज्जाअणुप्पवायं, अबंझपाणाउ बारसं पुव्वं । तत्तो किरिय विसालं पुव्वं, तह बिंदुसारं च ॥
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