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समवायांग सूत्र
दगमाला (उदकमाला) आती है, वह दस हजार यौजन की चौड़ी है। वह सोलह हजार योजन तक ऊंची गई है। इस रत्न प्रभा नामक पहली नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति. सोलह पल्योपम की कही गई है। धूमप्रभा नामक पांचवीं नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति सोलह सागरोपम की कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति सोलह पल्योपम की कही गई है। सौधर्म और ईशान नामक पहले और दूसरे देवलोक में कितनेक देवों की स्थिति सोलह पल्योपम की कही गई है। महाशुक्र नामक आठवें देवलोक में कितनेक देवों की स्थिति सोलह सागरोपम की कही गई है। महाशुक्र देवलोक के अन्तर्गत आवर्त, व्यावत, नन्दिकावर्त, महानन्दिकावर्त्त, अङ्कश, अङ्कशप्रलम्ब, भद्र, सुभद्र, महाभद्र, सर्वतोभद्, भद्रोत्तरावतंसक इन ग्यारह विमानों में जो देव देव रूप से उत्पन्न होते हैं। उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति सोलह सागरोपम की कही गई है। वे देव सोलह पखवाड़ों से आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास लेते हैं और बाह्य श्वासोच्छ्वास लेते हैं। उन देवों को सोलह हजार वर्षों से आहार की इच्छा उत्पन्न होती है। कितने भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो सोलह भव करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे ॥ १६॥
विवेचन - सूत्रकृताङ्ग सूत्र में स्वसमय (स्वसिद्धान्त) का सुन्दर रीति से वर्णन किया है। उसके बाद परसमय (परसिद्धान्त) अर्थात् अन्यमतावलम्बी ३६३ पाखण्ड मत का स्वरूप बतलाकर उनका युक्ति पूर्वक खण्डन किया गया है। इससे यह बात भी स्पष्ट होती है कि पहले स्वसिद्धान्त का ज्ञान करना चाहिए, उसके बाद परसिद्धान्त। इस कारण से सूयगडाङ्ग सूत्र का विशेष महत्त्व है।
कषाय मोहनीय कर्म के उदय से होने वाले क्रोध, मान, माया और लोभ रूप आत्मा के परिणाम विशेष को कषाय कहते हैं। प्रत्येक कषाय के चार-चार भेद हैं - १. अनन्तानुबन्धी २. अप्रत्याख्यान ३. प्रत्याख्यानावरण ४. संज्वलन।
अनन्तानुबन्धी - जिस कषाय के प्रभाव से जीव अनन्तकाल तक संसार में परिभ्रमण करता है। उस कषाय को अनन्तानुबन्धी कषाय कहते हैं। यह कषाय सम्यक्त्व का घात करता है।
अप्रत्याख्यान - जिस कषाय के उदय से देश विरति रूप अल्प (थोड़ा सा भी) प्रत्याख्यान नहीं होता, उसे अप्रत्याख्यान कषाय कहते हैं। इस कषाय से श्रावक धर्म की प्राप्ति नहीं होती है।
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