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समवाय १०
देने वाले। इन दस प्रकार के वृक्षों में युगलियों की आवश्यकताएं पूरी होती हैं। इस रत्नप्रभा नामक पहली नरक में नैरयिकों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की कही गई है। इस रत्नप्रभा नामक पहली नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति दस पल्योपम की कही गई है। पंकप्रभा नामक चौथी नरक में दस लाख नरकावास कहे गये हैं। पंकप्रभा नामक चौथी नरक में कितनेक नैरयिकों की उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम की कही गई है। पांचवीं धूमप्रभा नामक नरक में कितनेक नैरयिकों की जघन्य स्थिति दस सागरोपम की कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की कही गई है। असुरकुमारों के इन्द्रों को छोड़ कर बाकी कितनेक भवनपति देवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति दस पल्योपम कही गई है। बादर वनस्पतिकाय की उत्कृष्ट स्थिति दस हजार वर्ष की कही गई है। कितनेक वाणव्यन्तर देवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की कही गई है। सौधर्म और ईशान नामक पहले और दूसरे देवलोक में कितनेक देवों की स्थिति दस पल्योपम की कही गई है। पांचवें ब्रह्मलोक देवलोक में देवों की उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम की कही गई है। छठे लान्तक देवलोक में कितनेक देवों की जघन्य स्थिति दस सागरोपम की कही गई है। घोष, सुघोष, महाघोष, नन्दीघोष, सुस्वर, मनोरम, रम्य, रम्यक्, रमणीय, मङ्गलावर्त ब्रह्मलोकावतंसक इन ग्यारह विमानों में जो देव देव रूप से उत्पन्न होते हैं उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम की कही गई है। वे देव दस पखवाड़ों से आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास लेते हैं और बाह्य श्वासोच्छ्वास लेते हैं। उन देवों को दस हजार वर्षों से. आहार की इच्छा पैदा होती है। कितनेक भव सिद्धिक जीव ऐसे हैं जो दस भव करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे ॥ १० ॥
विवेचन - यहाँ पर श्रमण धर्म १० बतलाये गये हैं कहीं कहीं पर इनको १० यति धर्म भी कहा है। इन सब में पहला नम्बर क्षमा को दिया है वास्तव में यह सब धर्मों का शिरोमणि धर्म है। पूर्वाचार्यों ने कहा है -
"सहु धर्म सिरे, क्षमा धर्मनी होड तो कहोनी कोण करे"
तीर्थङ्कर भगवान् क्षमाशूर होते हैं - "खंती सूरा अरिहंता" श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को मारने के लिये उन पर गोशालक ने तेजोलेश्या छोड़ी किन्तु अनन्त शक्ति सम्पन्न होते हुये भी भगवान् महावीर ने उसका कुछ प्रतीकार नहीं किया । किन्तु उसको क्षमा कर दिया यह क्षमा शूरता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
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