________________
परमाणुओं के असर से छूट जाता है और फिर 'खुद' प्रकृति के परिणामों के लिए जोखिमदार नहीं रहता ।
अवस्था दृष्टि से आकर्षण का उद्भव होता है और तत्वदृष्टि से वीतरागता उत्पन्न होती है । अवस्था में तन्मयाकार होने पर ही अंदर चुंबकत्व उत्पन्न होता है और उसे फिर स्वभाव से ही आकर्षण होने लगता है । अतः जब 'दृष्टि' बदलेगी, तभी चुंबकत्व खत्म होगा और आकर्षण रुकेगा। यानी 'खुद' आत्मस्वभाव में रहे और परमाणुओं की प्रत्येक क्रिया को सिर्फ देखता और जानता रहे। परमाणु जब ग्रंथि के रूप में फूटें, तब खुद उनमें तन्मयाकार नहीं हो, उनके असर को नोट करे, एक क्षण के लिए भी उस असर को अपना नहीं माने, पर परिणाम को जाने और खुद के स्व परिणाम की यथार्थ समझ बरते, तो विषय विषयरूप नहीं रहकर, ज्ञेय बनकर निर्जरित हो जाएगा। लेकिन ऐसी जागृति तो, जब सभी स्थूल दोष होने बंद हो जाएँ, सूक्ष्म में भी काफ़ी कुछ साफ हो जाए और 'विज्ञान' की यथार्थ समझ बरते, तभी परिणामित होती है ।
८. वैज्ञानिक 'गाइड' ब्रह्मचर्य हेतु
ब्रह्मचर्य पर इतने सारे सूक्ष्म, वैज्ञानिक स्पष्टीकरण कहीं भी नहीं बताए गए हैं। परम पूज्य दादाश्री ने बहुत ही सरल तरीके से तमाम रहस्य खोल दिए हैं। जिनकी पुस्तकें साधकों को बहुत ही काम आएँ, ऐसी हैं। कितने ही साधक दादाश्री की पुस्तकें पढ़कर ब्रह्मचर्य सिद्ध कर लेते हैं। ब्रह्मचर्य का महत्व बतानेवाली उनकी सचोट वाणी और विषय के परिणामों की भयंकरता को बतानेवाली सचोट वाणी सुज्ञ पाठकों को खड़ा ही कर देती है। अंदर से जागृत कर देती है और ब्रह्मचर्य की ओर मोड़ देती है। ऐसी वाणी पढ़कर ही ब्रह्मचर्य का पालन संभव है।
- डॉ. नीरुबहन अमीन
32