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ब्रह्मचर्य का मूल्य, स्पष्टवेदन आत्मसुख
की है। फिर इत्र लगाते हैं, सुगंधी लेकर दुर्गंध को टालते हैं। लेकिन ऐसे तो कहीं दुर्गंध जाती होगी? ये जानवर भी दुष्चारित्रवाले नहीं होते। जानवर भी चारित्रवाले होते हैं ।
प्रश्नकर्ता : वह कैसे ?
दादाश्री : जानवरों में तो किसी खास सीज़न में ही विषय होता है और इन मनुष्यों में तो सीज़न-वीज़न का कोई ठिकाना ही नहीं है। मनुष्य तो जानवरों से भी गए - गुज़रे हैं। जानवरों में तो कोई अवगुण है ही नहीं। सभी अवगुणों का भंडार हो तो वह है, ये मनुष्य ! चारित्र मुख्य चीज़ है। चारित्र के आधार पर तो मनुष्य भी देवता कहलाता है । लोग कहते हैं न कि ये देवता जैसे आदमी हैं ।
ज्ञानियों का ब्रह्मचर्य
प्रश्नकर्ता : तो ब्रह्मचर्य नेचर के विरुद्ध हुआ न ?
दादाश्री : हाँ, ब्रह्मचर्य तो नेचर के विरुद्ध ही है न!
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प्रश्नकर्ता : तो फिर जगत् में ब्रह्मचर्यव्रत लिया जाता है, दिया जाता है, वह किसलिए ?
दादाश्री : वह तो, पूर्वभव में जो भाव किए थे, उसका फल है 1 प्रश्नकर्ता : वह कैसे पता चलेगा कि हमने पूर्व में भाव किए हैं ?
दादाश्री : ऐसा तो शायद ही कोई व्यक्ति होगा, करोड़ों में एकाध कोई होगा। ज़्यादा होते नहीं हैं न! इन साधु-महाराजों को किसलिए वैराग्य आता होगा ?
प्रश्नकर्ता : पूर्वभव में भाव किया होगा इसलिए ।
दादाश्री : इसलिए हम क्या कहना चाहते हैं कि ज़बरदस्ती ब्रह्मचर्य पालन मत करना, ब्रह्मचर्य की भावना करना । ब्रह्मचर्य तो भावना का फल है। बाकी, ये साधु जो ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं वह भावना के फल स्वरूप है। उसमें उनकी जागृति है, ऐसा नहीं माना जाएगा । जागृति तो