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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
जाता हैं, मानो अरंडी का तेल पीया हो! उसे तो, सोचते ही घिन आती
है!
प्रश्नकर्ता : वर्ना फिर भी यदि लोगों के दु:खों के परिणाम इतने अधिक विचित्र हैं तो वे कब छूट पाएँगे? इतने सारे दुःख सहन करते हैं ये लोग, इतने से सुख के लिए।
दादाश्री : वही, इसीका लालच और कितने दु:ख भुगतने पड़ते हैं।
प्रश्नकर्ता : पूरी लाइफ खत्म कर देता है उसमें। पूरा जीवन प्रतिदिन वही हैमरिंग। वही का वही टकराव।
प्रश्नकर्ता : री पे करते समय जो दुःख होता है, वह तो इस पर आधारित है न कि आपकी कितनी आसक्ति या लोभ है।
दादाश्री : वह तो जितनी ज़्यादा आसक्ति उतना अधिक दुःख। कम आसक्ति रही तो कम दु:ख होता है। वह सब तो आसक्ति पर आधारित है न?
आपको कभी दाद हुआ है? उसे जितना खुजलाओ, उतना ज़्यादा मज़ा आता है न? अब वह सुख आप किस से लेते हैं ? पुद्गल से। दोनों को 'रबिंग' करके घिस-घिस कर, 'इचिंग' करके, सुख ढूँढते हो। और जैसे ही हाथ रुका कि तुरंत जलन शुरू हो जाती है। देखो, पुद्गल उसे तुरंत ही दुःख देता है न? पुद्गल क्या कहता है कि मुझ में से क्या सुख ढूँढ रहे हो? आपके पास तो सुख है न? यहाँ हम से सुख लोगे तो आपको 'री पे' करना पड़ेगा।' दाद का अनुभव नहीं हुआ है आपको? मतलब ये सभी 'री पे' करने की चीजें हैं। इस दाद में बड़ा मज़ा आता है न? जब वह खुजलाता है, उस समय उसके चेहरे पर कितना आनंद होता है न? तब देखनेवाले को ऐसा लगता है कि, 'हे भगवान, मुझे भी दाद देना।' लोग ऐसा करते हैं या नहीं?
प्रश्नकर्ता : ऐसे खुजलाने में आनंद कहाँ से होगा? दादाश्री : नहीं-नहीं, खुजलाते समय उसके मुँह पर बहुत आनंद