Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 276
________________ विषय भोग, नहीं हैं निकाली प्रश्नकर्ता : विषय - कषाय की जलन का वर्णन, मरण से भी ज़्यादा कहा गया है। यानी उसके बजाय मनुष्य मरना पसंद करेगा । २३९ दादाश्री : नहीं। उसने तो मृत्यु की क़ीमत ही नहीं रखी। उसने तो अनंत जन्मों से यही किया है, पाशवता ही की है, अन्य कुछ भी नहीं किया। लेकिन मृत्यु तो बेहतर है । मृत्यु तो स्वाभाविक चीज़ है और यह तो विभाविक चीज़ है । समझदार को विषय शोभा नहीं देता । एक ओर लाख रुपये मिल रहे हों और उसके सामने विषय का संयोग हो तो लाख को जाने दे, लेकिन विषय का सेवन नहीं करे। विषय ही संसार का मूल कारण है, जगत् का कॉज़ यही है न ? हमने तो यह विषय की छूट इसलिए दे रखी है कि नहीं तो इस मार्ग को कोई प्राप्त ही नहीं कर पाता । इसलिए हमने यह अक्रम विज्ञान डिस्चार्ज और चार्ज के रूप में समझाया है । यह विषय डिस्चार्ज है, ऐसा समझने की शक्ति नहीं है न सभी में ? इनका सामर्थ्य क्या? वर्ना हमारा जो शब्द है न, 'डिस्चार्ज', यह विषय डिस्चार्ज स्वरूप ही है। लेकिन यह बात समझने का उतना सामर्थ्य ही नहीं है न ? क्योंकि ये सब रात-दिन विषय की जलनवाले हैं। वर्ना यह चार्ज और डिस्चार्ज हमने जो रखा है वह एक्ज़ेक्टली वैसा ही है । यह तो बहुत ऊँचा मार्ग बताया है, वर्ना इनमें से कोई धर्म प्राप्त कर ही नहीं पाता न? ये बीवी-बच्चोंवाले धर्म कैसे प्राप्त कर पाते ? प्रश्नकर्ता : कई लोग ऐसा समझते हैं कि 'अक्रम' में ब्रह्मचर्य का कोई महत्व ही नहीं है । वह तो डिस्चार्ज ही है न! I " दादाश्री : अक्रम का अर्थ ऐसा है ही नहीं। ऐसा अर्थ करनेवाला 'अक्रम मार्ग' को समझा ही नहीं है। यदि समझा होता तो मुझे उसे विषय के संबंध में फिर से कहना ही नहीं पड़ता । अक्रम मार्ग यानी क्या कि डिस्चार्ज को डिस्चार्ज माना जाता है । लेकिन इन लोगों के लिए डिस्चार्ज है ही नहीं। यह तो, अभी लालच है अंदर ! ये सब तो राज़ी - खुशी से करते हैं। डिस्चार्ज को किसी ने समझा है ? वर्ना हमने जो मार्ग दिया है, उसमें फिर ब्रह्मचर्य के संबंधित कुछ कहने को रहता ही नहीं! यह तो, खुद की भाषा में मनचाहा अर्थ करेंगे बाद में !

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