Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 313
________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) राग भी नहीं होता और द्वेष भी नहीं होता । ये दोनों तो खुद की कल्पना है । उसे भ्रांति कहते हैं । भ्रांति चली जाए तो फिर कुछ है ही नहीं । २७६ और फिर यह एक प्रकार का आकर्षण नहीं है। बच्चों पर भी आकर्षण होता है। यानी यह एक प्रकार की इलेक्ट्रिसिटी से ये सारे परमाणु लोहचुंबक जैसे हो जाते हैं, उसमें यदि सामनेवाले के मिलते-जुलते परमाणु आएँ, तो वहाँ आकर्षण होता है, अन्यत्र आकर्षण नहीं होता । लोहचुंबक का तो हमें अनुभव है न ? उसमें कौन किसके प्रति राग करता है ? और यहाँ तो आप राग नहीं करते हैं न, किसी से ? जैसा वह लोहचुंबक स्वभाविक है, वैसा ही यह भी स्वभाविक है । लेकिन इसमें क्या कहते हैं कि, ‘मैंने किया', ‘मैं कर रहा हूँ' ऐसा कहा कि चिपका फिर! वर्ना कहेंगे, ‘मुझसे ऐसा हो गया' । अरे! क्यों फँसता है ! आकर्षण हो जाए तब फिर उसे, 'यह मेरा, इतना मेरा' करता रहता है । अरे! नहीं है तेरा । यह पूँजी भी तेरी नहीं है और यह मिल्कियत भी तेरी नहीं है। तू क्यों बेकार ही फँस रहा है ? शादी की तभी से 'मेरी वाइफ, मेरी वाइफ' करता है । लेकिन जब शादी नहीं हुई थी, उस समय ? तब कहेगा, 'उससे पहले तो मेरी नहीं थी!' शादी हुई तभी से डोरी से लपेटता रहता है, 'मेरी, मेरी ' करता है। फिर जब पत्नी मर जाए, तब रोता है। शादी नहीं की थी तब मेरी नहीं थी तो यह 'मेरी' कैसे घुस गया ? अब 'नहीं है मेरी, नहीं है मेरी' कर तो तेरा जो लपेटा हुआ है, वह छूट जाएगा! लोग क्या कहते हैं? तूने माया को पकड़ा है, उसे छोड़ दे। लेकिन छूटे कैसे ? ज्ञानीपुरुष सब छुड़वा देते हैं। ज्ञानीपुरुष खुद मुक्त हुए हैं, वे सभी को मुक्त करवा देते हैं। उनके साइन्टिफिक तरीके से वे रास्ता बताते हैं कि ऐसे छूटा जा सकता है, नहीं तो छूटने का और कोई रास्ता नहीं है। यानी मोक्षमार्ग को समझना है, केवल समझते रहना है ! वहाँ तत्वदृष्टि से ही मुक्ति अक्रम यानी क्या? कि कर्म खपाए बिना ज्ञान प्राप्त हुआ है। अभी तक किसी प्रकार के कर्म नहीं खपाए हैं । अतः बात को समझ लेना है। इसमें अन्य कुछ बाधक नहीं है ! और यह विषय एक ऐसी चीज़ है कि

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