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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
यदि ब्रह्मचर्य की बात की जाए तो इन्सान समझदार हो जाएगा ! ब्रह्मचर्य शब्द सुना ही नहीं। और यहाँ पर तो ब्रह्मचर्य पर दो पुस्तकें लिखी गई हैं। तो यदि कोई व्यक्ति ब्रह्मचर्य पालन नहीं कर रहा हो तो भी पालन करने की शुरूआत कर देगा !
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जिसने ब्रह्मचर्य का कभी मुँह तक नहीं देखा हो, वह भी ब्रह्मचर्य पालन शुरू कर देता है । पैंतीस साल के दोनों साथ में आए, वे मुझसे कहने लगे, ‘हमें ब्रह्मचर्य व्रत लेना है ।' तब मैंने पूछा, 'क्यों, इतनी छोटी उम्र में दोनों एक साथ ?' तब कहने लगे, 'आपकी ब्रह्मचर्य की पुस्तक पढ़ी, इसलिए हमें जोखिम समझ में आ गया। अब हमें वह सब नहीं चाहिए।' यह पुस्तक कई लोगों में परिवर्तन लाई है । भान ही नहीं है न? सभी लोग यह करते आए हैं, पड़ोसी करते आए हैं, प्रेसिडेन्ट करते हैं, प्रधानमंत्री ऐसा करते हैं, बाकी सभी ऐसा ही करते हैं। साधु-आचार्य भी अंदर कितना कुछ उल्टा-सीधा करते रहते हैं। इसलिए फिर लोग समझे कि यही मुख्य चीज़ है, इस दुनिया में। इसलिए इस पर सोचा ही नहीं किसी ने कि इसमें सुख नहीं है । जब से यह पढ़ा तभी से पता चल गया कि ऐसा तो जानते ही नहीं थे, वर्ना शादी ही नहीं करते न ! यह भी जान लिया हमने । जीवन का सबसे अच्छा समय ऐसे ही बिता दिया, शीलदर्शक के बिना । अब कहते हैं, 'मेरा काम हो गया !'
इससे तो बहुत सुख बर्तता है, कुछ लोगों को तो इतना अधिक सुख बर्तता है ! यह पुस्तक पढ़ने के बाद समझ में आया कि इतना सारा जोखिम और इतना सारा पाप और इतना सारा दोष होने के बावजूद हम इसमें पड़े हुए है। इस लोकसंज्ञा की वजह से लोग इसमें पड़े हुए हैं। इसलिए इसमें पड़े हैं। जानवर पड़े, मनुष्य पड़े, कोई इन्सान बचा ही कहाँ ? अन्य चार विषयों में हर्ज नहीं है, इसी विषय का झंझट है । नासमझी की वजह से यह सब उल्टा चल रहा है!
यह पुस्तक पढ़ने के बाद ऐसे अनुभव होते हैं कि 'विषय के विचार ही नहीं आते, बंद हो गए !'