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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
दादाश्री : वहाँ आप जागृति नहीं रखते? और लोग आवाजें भी देते हैं, 'अरे! चंदूभाई फिसल जाओगे, जरा संभलकर चलना।' उसी प्रकार यह भी बड़ा फिसलनवाला आकर्षण है। अत: यहाँ पर बहुत ही जागृति चाहिए। यहाँ शुद्ध उपयोग रखना। जहाँ आकर्षण होता हो, वहाँ शुद्धात्मा देखकर, प्रतिक्रमण विधि आदि करके सब साफ कर देना। कहीं सभी जगह आकर्षण नहीं होता।
प्रश्नकर्ता : आकर्षण का प्रतिक्रमण करना पड़ता है ?
दादाश्री : हाँ और क्या! आकर्षण-विकर्षण इस शरीर को होता हो तो आपको चंदूभाई से कहना पड़ेगा कि, 'हे चंदूभाई, यहाँ आकर्षण हो रहा है तो प्रतिक्रमण करो।' तो आकर्षण बंद हो जाएगा। आकर्षणविकर्षण, ये दोनों ही हमें भटकाते हैं। यह पुद्गल क्या कहता है कि, 'आप शुद्धात्मा हो गए, उसमें मुझे हर्ज नहीं है, लेकिन आपका मोक्ष कब होगा? हम तो शुद्ध परमाणुओं के रूप में थे लेकिन आपने ही हमें बिगाड़ा है। इसलिए हमें शुद्ध बना दो। जैसे थे वैसे बना दो, तो आप छूट जाओगे। जब तक हमें शुद्ध नहीं करोगे, तब तक आप छूट नहीं पाओगे।' जब तक इस पुद्गल का निकाल नहीं होगा, तब तक वह छोड़ेगा नहीं। इसीलिए हमने इन सारी फाइलों का समभाव से निकाल करने को कहा है, वे परमाणु शुद्ध हो जाएँ, इसलिए कहा है।
पुद्गल की, खुद की ऐसी अलग-अलग शक्तियाँ हैं कि जो आत्मा को आकर्षित करती हैं। उन शक्तियों से ही खुद ने मार खाई है न! आत्मा, पुद्गल की शक्ति जानने निकला कि यह क्या है? यह कौन सी शक्ति है? अब उसमें वह खुद ही फँस गया, अब कैसे छूटे? यदि खुद के स्वरूप का भान होगा तो छूटेगा!