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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
है । पुरुष, कितना भी सुंदर हो, लेकिन स्त्री को यदि दो शब्द उल्टे बोल दिए, कि, 'तू बेअक्ल है' तो फिर स्त्री को ऐसा होता है कि, 'मुझे बेअक़्ल कहा?' तब फिर कड़वा लगता है। यानी सिर्फ आकर्षण ही नहीं है इस जगत् में। आकर्षण और विकर्षण दोनों ही हैं, यह द्वंद्वरूपी है ! यह जगत् द्वंद्वरूपी ही है। इसलिए सिर्फ आकर्षण ही नहीं होता । विकर्षण भी है ही । विकर्षण नहीं होगा तो फिर से आकर्षण होगा ही नहीं और यदि सिर्फ आकर्षण ही होगा, तब भी लोग ऊब जाएँगे।
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परमाणु में भर गया पावर
प्रश्नकर्ता : यह सब चेतन में कहाँ से घुस गया ? ऐसा क्यों शुरू हो गया ?
दादाश्री : उसे ऐसा भान हुआ कि 'यह तो, मैं खिंच रहा हूँ' और इतना समझ ले कि यह पुतला उस पुतले के साथ, उन दोनों में इलेक्ट्रिसिटी की वजह से दोनों खिंच रहे हैं, उसे 'मैं जाननेवाला हूँ' । लेकिन ऐसा भान नहीं रहा उसे। इलेक्ट्रिकल ऐडजस्टमेन्ट की वजह से लोहचुंबकत्व उत्पन्न होता है। इसलिए मुझे नहीं खिंचना है फिर भी खिंच जाता हूँ। इसलिए समझ में ऐसा आता है कि यह खुद नहीं खिंच रहा है। तय किया हो कि 'बिस्तर पर से इधर-उधर नहीं होना है ।' लेकिन वापस आधे घंटे बाद उठ जाता है! तब मन में ऐसा होता है कि, 'मैं ही कच्चा हूँ।' ‘तय किया था न ? फिर तू कैसे ढीला पड़ गया ? यह तो भीतर दूसरा भूत घुस गया है।' इस पर लोगों ने मुझसे फिर पूछा, मुझे कहते हैं कि, 'यह क्या हो रहा है?' मैंने कहा, 'यह तो इलेक्ट्रिकल ऐडजस्टमेन्ट की वजह से लोहचुंबकत्व रहता है। यानी लोहचुंबक पिन को हिलाता है, उस वजह से दोनों में रिश्ता है? यह लोहचुंबकत्व है ।' जबकि यह तो कहेगा, 'मैं गया, मैं निर्बल हो गया हूँ।' वह फिर निर्बल ही होता जाता है।‘मैं' गया ही नहीं, 'मैं' कैसे जा सकता है ? मेरा निश्चय है फिर 'मैं' गया कैसे ? लेकिन कहेगा, ‘मैं ही कच्चा हूँ। यह मैं ही हूँ', ऐसा मान बैठा है न। यानी इस प्रकार से उल्टा मान बैठा है। लेकिन किसने सिखाया यह उल्टा ? वह यह है कि उसके फादर ने कहा, 'तू ही है, तू ही चंदू है' फिर पत्नी ने