Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 309
________________ [७] आकर्षण - विकर्षण का सिद्धांत आकर्षण क्या है? वह समझ में आए तो सावधान रह सकेंगे आकर्षण से ही यह पूरा जगत् खड़ा है। इसमें भगवान को कुछ करने की ज़रूरत नहीं पड़ी, मात्र आकर्षण ही है ! यह स्त्री - पुरुष का जो है न, वह भी मात्र आकर्षण ही है । पिन और लोहचुंबक में जैसा आकर्षण है, वैसा ही यह स्त्री-पुरुष के बीच का आकर्षण है । सभी स्त्रियों के प्रति आकर्षण नहीं होता। समान परमाणु मिलते आएँ, तब उस स्त्री के प्रति आकर्षण होता है। आकर्षण होने के बाद खुद ने तय किया हो कि मुझे नहीं खिंचना है तो भी खिंच जाता है । वहाँ पर क्या सोचना नहीं चाहिए कि मुझे आकर्षित नहीं होना है ? फिर भी आकर्षण क्यों उत्पन्न होता है ? इसलिए 'देयर आर सम कॉज़ेज़', वे 'मैग्नेटिक कॉज़ेज़' हैं ! प्रश्नकर्ता : वह पूर्वजन्म के हो सकते हैं? दादाश्री : वह आकर्षण, हमारी इच्छा नहीं है फिर भी होता है, उसका मतलब ही पूर्वजन्म का है । इसे भी मैग्नेटिक हो चुका है और स्त्री को भी मैग्नेटिक हो चुका है । पूर्वजन्म में सूक्ष्म रूप में होता है और यहाँ स्थूल रूप में होता है । अतः फिर स्वाभाविक रूप से आकर्षण होता ही है। अब आकर्षण होता है, तब आपको मन में ऐसा लगता है कि 'मैं खिंच गया।' लेकिन जब आप अपना स्वरूप जान जाओगे, उसके बाद आपको ऐसा लगेगा कि 'चंदूभाई' आकर्षित हो गए। प्रश्नकर्ता : यह जो आकर्षण होता है, वह कर्म के अधीन है या नहीं ? दादाश्री : कर्म के अधीन तो पूरा ही जगत् है, लेकिन सामनेवाले

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