________________
२४४
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
प्रश्नकर्ता : किसी ने भी छूट नहीं दी है। इसमें तो बहुत 'स्ट्रिक्ट'
दादाश्री : इसमें 'स्ट्रिक्ट' हैं, इसलिए लोग प्राप्ति नहीं कर पाते। सत्य हकीकत नहीं जानने की वजह से इसमें 'स्ट्रिक्ट' रहते हैं। इसलिए लोग प्राप्ति नहीं कर पाते। संसारी तो ऐसा ही कहते हैं कि, 'भाई, हम तो संसारी हैं, हमारा कल्याण तो हो ही नहीं सकेगा न?' खुद के बारे में ये लोग ऐसा मानकर बैठ गए हैं। अतः यह 'स्ट्रिक्ट' होना गलत है। 'हम' ज्ञान द्वारा अलग तरह का देखते हैं!
प्रश्नकर्ता : जितने समय तक 'डिस्चार्ज' होता है, तो उतना आवरण नहीं बढ़ता?
दादाश्री : अपने 'ज्ञान' वालों में आवरण नहीं बढ़ता, हमारी आज्ञा है न! हमने हक के विषय के लिए मना किया ही नहीं है न! मना किया होता तो इन सबके घर में क्या होता?
प्रश्नकर्ता : आपने यदि उस के लिए मना किया होता तो बहुत बड़ा तूफ़ान हो जाता!
दादाश्री : लेकिन हम ऐसा कहें ही नहीं। किसी को भी दु:ख हो ऐसा वर्णन ही नहीं करते न!
प्रश्नकर्ता : अभी तक मैं इसी द्वंद्व में था। मुझे ऐसा लगता था कि विषय से आवरण आता है।
दादाश्री : लेकिन दुनिया ने जो देखा होगा, मैंने उससे कुछ नई ही तरह का देखा है। तभी मैं ऐसी आज्ञा दे सकता हूँ, वर्ना देता ही नहीं न! यह तो जोखिमदारी है! मैंने ऐसा विज्ञान देखा है, तभी मैंने आपको छूट दी है, वर्ना छूट नहीं दी जा सकती। मैंने आपको किस तरह की छूट दी है? हमने हक के विषय की छूट दी है, ताकि फिर बाहर दृष्टि नहीं बिगड़े। अगर बिगड़ गई हो तो सुधार लेना। लेकिन हक की जगह का एक ही स्थान तय हो गया, इसलिए फिर आपको 'अलाउ' करते हैं। लेकिन यह क्या सिर्फ आत्मसुख है या दूसरा कोई सुख है, इतना जानने