________________
२४८
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
दादाश्री : सुचरित्र यानी खुद के हक का भोगना। हक का चरित्र भोगना। और कुचरित्र यानी अणहक्क का भोगना। अणहक्क का तो मुंबई में इस्तेमाल ही नहीं होता न?
प्रश्नकर्ता : बगैर अणहक्क वाला तो कोई रास्ता ही नहीं दिखाई
देता
दादाश्री : काफी कुछ माल ऐसा ही भरा हुआ है। कोई आदमी खुद होटल में जाकर माँसाहार करे और दूसरे एक आदमी को पुलिसवाला पकड़कर ले जाए और उसे मारपीटकर कहे कि माँसाहार करना ही पड़ेगा तब फिर उसे खाना पड़े तो इन दोनों में थोड़ा-बहुत अंतर है न? इस पर भगवान ने कहा कि जैसे पुलिसवाले द्वारा पकड़ा गया हो, उस प्रकार से विषय का आराधन करेगा तो हमें उसमें एतराज़ नहीं है। चरित्र वही का वही, लेकिन पुलिसवाले द्वारा पकड़ा गया हो, ऐसा हो तो भगवान उसमें बिल्कुल भी एतराज़ नहीं करते।
विषय, दूर कराए आत्मानुभव मैंने आपको आत्मा तो दिया है, लेकिन कौन सी चीज़ आप पर उसका असर नहीं होने देती? विषय! यह विषय कहीं रोज़-रोज़ नहीं होता। कभी-कभी होता है। लेकिन उसके बाद उसका असर बहुत परेशान करता है और विषय का अभिप्राय बहुत मार खिलाता है। ब्रह्मचर्य का भंग हुआ, इसलिए जंतु का असर हुआ न? यदि ऐसा भंग हो ही नहीं, तब तो कितना अच्छा रहे? इन जंतुओं का सूक्ष्म असर इतना अधिक खराब पड़ता है कि घड़ीभर भी चैन से नहीं बैठने देता।
प्रश्नकर्ता : शुद्धात्मा पद में रहने के लिए मुख्य चीज़ कौन सी चाहिए?
दादाश्री : यदि विषय में से मुक्त हो जाए तो फिर शुद्धात्मा में रह पाएगा। शादीशुदा हो तो उसमें हमें एतराज़ नहीं है, लेकिन हरहाया में एतराज़ है। पत्नी के साथ पाँच महाव्रतों में से, एक महाव्रत का, ब्रह्मचर्य का भंग होता है और इस कलियुग में तो एक-दूसरे में ऐसे जंतु होते हैं