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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
देखते हैं कि यदि विषय बंद हो गए हैं, तो इनकी बात सही है और यदि विषय बंद नहीं हुए हैं तो, 'रहने दो। आप की बात गप्प है।' ऐसा कहेंगे।
आप संसार में रह रहे हों और आप ऐसा कहो कि आपके आर्तध्यान और रौद्रध्यान बंद हो चुके हैं तो उनके मन में होगा कि, 'यह ज़रा ज़्यादा ही अक्लमंद है। आर्तध्यान-रौद्रध्यान बंद हो जाएँ, ऐसा तो हो ही नहीं सकता न! यह तो नासमझी की बात कर रहा है।' लेकिन वह यह नहीं जानता कि यह कौन सा विज्ञान है! वर्ल्ड का आश्चर्य है ! ग्यारहवाँ आश्चर्य है! जो मुझसे मिला, उसका कल्याण हो जाएगा, लेकिन मिलना चाहिए।
किस अपेक्षा से विषय बंधन स्वरूप? प्रश्नकर्ता : कामवासना को नो-कषाय में क्यों रखा गया है?
दादाश्री : तो उसे किस में रखें फिर? कषाय में रखे तो रखनेवाला मार खाएगा, शास्त्र गलत साबित होंगे। उसमें क्रोध-मान-माया-लोभ नहीं है, लेकिन वे ज्ञानी में नहीं है, जबकि अज्ञानी में हैं। इसलिए उसे नोकषाय में रखा है। वह कषाय नहीं है। तू टेढ़ा है तो यह टेढ़ा होगा, तू सीधा हो जाएगा तो यह सीधा ही है।
प्रश्नकर्ता : फिर भी ब्रह्मचर्य को महाव्रत में रखा गया है और विषय को नो-कषाय में रखा है, ऐसा क्यों?
दादाश्री : ब्रह्मचर्य को तो महाव्रत में रखना पड़ता है और विषय को नो-कषाय में रखना पड़ता है। क्योंकि इसमें क्रोध-मान-माया-लोभ नहीं हैं। लेकिन यदि क्रोधी या मानी हो, तो उस पर वैसा ही असर होगा।
प्रश्नकर्ता : लेकिन कामवासना, वह राग तो है न?
दादाश्री : हाँ, लेकिन उसे ज्ञानी की स्थिति में चारित्रमोह कहा जाता है। और संसार के लोगों के लिए तो यह सब राग ही है न! इसलिए भगवान ने कैसा मानने को कहा है ? संसारी के लिए ऐसा मान सकते हैं और ज्ञानी के लिए ऐसा मान सकते हैं।
प्रश्नकर्ता : तो क्या उसे ऐसा कहेंगे कि यह कषाय नहीं है?