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संसारवृक्ष की जड़, विषय
दादाश्री : नो-कषाय यानी नहीं के बराबर कषाय अर्थात् नहींवत्। क्योंकि मनुष्य को उसमें मजबूरन पड़ना पड़ता है । जैसे चलती गाड़ी से कोई गिर जाता है, ऐसे करना पड़ता है। चलती गाड़ी से जान-बूझकर कोई गिरता होगा ?
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भय है न, उसे भी नो-कषाय कहा है, क्योंकि भय लगने से शरीर काँप उठता है। लेकिन वह संगीचेतना का भय है, आत्मा का भय नहीं है। उसी प्रकार विषय भी संगीचेतना का है । ज्ञानियों के लिए वह सब अलग तरह का है, वह निर्जरा ( आत्म प्रदेश में से कर्मों का अलग होना) का कारण है। अज्ञानी के लिए विषय, बंध का कारण है और ज्ञानी के लिए विषय, निर्जरा का कारण है । इसलिए उसे नो- कषाय में रखना होगा ।
प्रश्नकर्ता : यह बात तो ज्ञानी के लिए ही है न ? ज्ञानी के अलावा अन्य किसी के लिए नहीं है न ?
दादाश्री : ज्ञानी कौन ? जिन्हें यह ज्ञान प्राप्त हुआ है, वे भी ज्ञानी कहलाते हैं और उनके अलावा अन्य किसी को तो नो- कषाय जैसा होता ही नहीं है। उनमें तो पच्चीसों प्रकार के कषाय हैं, वहाँ तो पूरी दुकान ही बड़ी है न! इस ज्ञान के बाद आपमें तो क्रोध - मान-माया - लोभ नहीं रहे, ऐसा कहना हो तो कह सकते हैं
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विषय को कहा,
नो-कषाय
वास्तव में देखा जाए तो इन्सान को विषय की ज़रूरत है ही नहीं। सब लोग जो कहते हैं, वह तो अज्ञानी की अपेक्षा ( के नज़रिये ) से हैं । बाकी ज्ञान की अपेक्षा ( के नज़रिये ) से मनुष्य को विषय की ज़रूरत है ही नहीं। और अज्ञान की अपेक्षा से विषय के बिना चले ऐसा नहीं है । लेकिन जब तक वह उसे सही तरीके से सेट करना नहीं आएगा, तो तब तक सब कच्चा पड़ जाएगा । ज्ञानी की चरित्र मोहनीय ऐसी होती है इसलिए, वर्ना ज्ञानी को तो विषय की ज़रूरत ही नहीं है। नौ प्रकार के नो- कषाय बताए गए हैं मतलब नहीं के बराबर और अन्य सोलह कषाय, वे तो बहुत 'स्ट्रोंग' कहे जाते हैं।