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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
'ज्ञानीपुरुष' ने आत्मा देखा हुआ होता है, अनुभव किया होता है, इसलिए फिर 'ज्ञानीपुरुष' जहाँ से भी वाणी बोलें, वह शुद्ध ही होता है
सारा !
आत्मा को जानने के लिए यह सबकुछ है न! आत्मा जान लिया यानी अपना काम पूरा हो गया । इसलिए कभी न कभी आत्मा जाने बगैर चारा ही नहीं है। जबकि लोग तो कहते हैं, 'हम आज हैं, तो भोग लें।' अरे! लेकिन तू कुछ भोगता ही नहीं है । तू उल्टा मानकर बैठा है कि ‘यह मैंने भोगा।' तू अहंकार ही कर रहा है । वे लोग, 'मैंने यह नहीं भोगा', ऐसा अहंकार करते हैं। सिर्फ अहंकार ही करते हैं, और कुछ नहीं करते। क्योंकि आत्मा सूक्ष्मातिसूक्ष्म है, यानी सूक्ष्मतम कहें तो चलेगा और ये विषय सूक्ष्मतर हैं, सूक्ष्म हैं, स्थूल हैं । उन दोनों का मेल कैसे हो सकता है? यानी आत्मा ने ऐसा कुछ भोगा ही नहीं । ये विषय तो, बहुत गहराई में जाओ न, तो वे सूक्ष्म होते हैं, फिर सूक्ष्मतर बनते हैं। सूक्ष्मतर सभी अनंग होते हैं।
प्रश्नकर्ता: इस हद तक के तो सभी देख लिए।
दादाश्री : वे सब तो स्थूल कहलाते हैं।
प्रश्नकर्ता : तो आप किसे सूक्ष्मतर कहते हैं ?
दादाश्री : वे तो तरह-तरह के अनंग विषय होते हैं । स्थूल विषय तो यों प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं । सूक्ष्म का वेदन होता है और सूक्ष्मतर में अंदर वे सभी अनंग भाव होते हैं। लेकिन वे आत्मा को स्पर्श नहीं कर सकते। फिर आप माथापच्ची करो या कुछ भी करो । मैंने जो आत्मा दिया है, उसे विषय स्पर्श नहीं कर सकते। लेकिन आपकी जागृति नहीं होने के कारण आप के लिए यह बंधन रखते हैं। आप संपूर्ण शुद्ध उपयोग में रह पाओ ऐसा नहीं है और इन पाँच आज्ञाओं में भी रह सको, ऐसा नहीं है । इसलिए आप पर ये बंधन रखने पड़ते हैं, सावधान करना पड़ता है । वर्ना सावधान नहीं करना पड़ता, एक अक्षर भी नहीं कहना पड़ता। यह विज्ञान तो बहुत अलग तरह का है ।