Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 306
________________ आत्मा अकर्ता - अभोक्ता २६९ इसलिए खुलकर कह रहा हूँ। वर्ना छान-छानकर नहीं बोलता कि, 'भाई, कर्म तो बंधेगा, यदि आप कभी ऐसा करोगे तो।' लेकिन मैं तो आपको निर्भय बना देता हूँ, निर्भय नहीं बनाता? विषय में कपट भी विष है। प्रश्नकर्ता : आप तो बिल्कुल निर्भय बना ही देते हैं। जब सभी निर्भय हो जाते हैं तो फिर उसका दुरुपयोग हो जाता हैं। उसीकी तो बात है न? मुख्य मुद्दा वहीं पर है न? । दादाश्री : ऐसा है न, मेरा क्या कहना है? सिर्फ इस विषय के बारे में ही सभी जागृत रहना। खुद की स्त्री या फिर खुद का पुरुष, सिर्फ उसी विषय की आपको छूट दे रखी है। उतनी मैंने छूट दी है। लेकिन यदि दूसरी कोई हो तो हमसे कहकर, हमसे मंजूरी ले लेना और हम तुझे मंजूरी देंगे भी सही। इसलिए हिचकिचाहट मत रखना। लेकिन उसे सावधान भी करेंगे कि इस रास्ते पर इस तरह चलना है। मंजूरी नहीं देंगे तो चलेगा ही नहीं न! लेकिन यदि सिर्फ खुद के एक 'स्त्री-पुरुष' का हो, तो हमारी मंजूरी लेने की ज़रूरत नहीं है! अपने 'ज्ञान' से दो-चार जन्म में कभी न कभी, आगे-पीछे लेकिन मोक्ष में जाएगा, पंद्रह जन्मों में भी मोक्ष में जाए तो उसमें हर्ज नहीं है, लेकिन इसमें से जो लटक जाए वह तो अस्सी हज़ार सालों तक लटकता रहेगा फिर भी ठिकाने नहीं लगेगा! अस्सी हज़ार सालों तक बहुत ही परेशानीवाला काल आनेवाला है। इसलिए इसमें से कोई लटके नहीं इतना हमें देखना है। प्रश्नकर्ता : दादा, किस में से नहीं लटके? इसमें से यानी किस में से? दादाश्री : इस 'ज्ञान' में से। यह 'ज्ञान' लेने के बाद जान-बूझकर उल्टा करे तो फिर क्या होगा? प्रश्नकर्ता : 'ज्ञान' लेने के बाद कोई उल्टा कर सकता है क्या? दादाश्री : हाँ, कर सकता है न! आपके घर के सामने पौधे लगाए

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