________________
२६२
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
अरे, स्थूल का और सूक्ष्मतम का मेल कैसे पड़े? उन दोनों में कभी मेल हो ही नहीं सकता और मेल हुआ भी नहीं है। विषय का स्वभाव अलग है और आत्मा का स्वभाव अलग। आत्मा ने पाँच इन्द्रियों के कोई भी विषय कभी-भी भोगे ही नहीं। जबकि लोग कहते हैं कि मेरे आत्मा ने विषय भोगा! अरे, आत्मा कभी विषय भोगता होगा? इसलिए कृष्ण भगवान ने कहा है कि, 'विषय, विषय में बर्तते हैं।' ऐसा कहा फिर भी लोगों की समझ में नहीं आया। और यह तो कहता है कि, 'मैं ही भोग रहा हूँ।' वर्ना लोग तो कहते कि, 'विषय, विषय में बर्तते हैं, आत्मा तो सूक्ष्म है, इसलिए भोगो।' इस प्रकार उसका भी दुरुपयोग कर लेते। यदि इन शब्दों का दुरुपयोग करे तब तो मार ही डालेगा। इसलिए इन लोगों ने बाड़ बनाई ताकि कोई दुरुपयोग नहीं करे।
आत्मा ने कभी भी विषय भोगा ही नहीं है। मुझसे लोग कहते हैं कि, 'ऐसा कहकर आप पूरे शास्त्र उड़ा रहे हैं ?' तब मैंने कहा, 'नहीं, शास्त्र नहीं उड़ा रहा हूँ।' आप जो कहते हैं कि 'मैंने विषय भोगा।' वह आपकी रोंग बिलीफ है, वह रोंग बिलीफ ही आपको परेशान करती है। बाकी, आत्मा ने कभी विषय भोगा ही नहीं। लेकिन आपको जो 'मैंने विषय भोगा' ऐसा अंदर खटकता है, वह दुःख मिटाने के लिए ज्ञानीपुरुष आपकी रोंग बिलीफ फ्रैक्चर कर देते हैं। अन्य कुछ है ही नहीं।
प्रश्नकर्ता : 'मैंने भोगा' वह भी इगोइज़म है न?
दादाश्री : हाँ, केवल इगोइज़म है। 'मैंने ऐसा किया और मैंने नहीं किया', वह सब इगोइज़म है।
प्रश्नकर्ता : अब इस बात का दुरुपयोग हो सकता है न? मानो लाइसेन्स मिल गया हो, ऐसे दुरुपयोग कर लेते हैं।
दादाश्री : ऐसा है न, यह बात तो कैसी है? सोने की कटार होती है न, उसे कैसे इस्तेमाल करना, उसका एक नियम ही होता है। अब उसका कोई दुरुपयोग करे और पेट में मार दे तो उसे कैसे मना कर सकते हैं? क्योंकि जो सुल्टा काम करे, वह उल्टा काम भी कर सकता है। लेकिन