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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
दादाश्री : उस झंझट में मत पड़ना, राग- - द्वेष नहीं हों, वही देखना, बस । और विषय यानी क्या ? थाली भी विषय है । खाना आया, क्या वह विषय नहीं है? अब आपने कल पूरा दिन उपवास किया हो और अब भूख लगी हो और आपको भोजन परोसा । अब ग्यारह बजे खाना परोसा, मज़ेदार आम आदि सब परोसा हो और तुरंत ही थाली उठाकर ले जाएँ। अब खाना खाया तक नहीं, उससे पहले तो थाली उठाकर ले जाते हैं। अब उस समय अंदर परिणाम नहीं बदलें, तो समझना कि अब इसमें हर्ज नहीं है । और विषय में तो इस हद तक परेशानी है कि विषय की याचकता नहीं होनी चाहिए । लाचारी या याचकता नहीं होनी चाहिए। आप शुद्धात्मा हो गए हैं, अब ! याचकता शब्द समझ में आता है न?
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प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : ‘यह आपको बाउन्ड्री बता रहा हूँ ।' किसी भी चीज़ की याचकता यानी क्या कि जलेबी नहीं मिलेगी तो, ‘जलेबी लाओ न! थोड़ी जलेबी लाओ' कहता है ! छोड़ न भाई ! अनंत जन्मों से जलेबियाँ खाई हैं, फिर भी अभी तक याचकता रखते हो ? जिसकी लालसा होती है न, उसकी याचकता होती है मनुष्य को ! ऐसी याचकता नहीं होनी चाहिए। अन्य सबकुछ खाना-पीना सब करना, लेकिन याचकता नहीं होनी चाहिए । याचकता, वह लाचारी है एक तरह की !
विषय, वह है इफेक्ट
प्रश्नकर्ता : यह ज़रा विस्तार से समझाइए कि ये सारे विषय इफेक्ट
हैं।
दादाश्री : विषय, वे इफेक्ट ही हैं । हमेशा वे इफेक्ट ही हैं। लेकिन जब तक कॉज़ेज़ समझ में नहीं आते, तब तक विषय भी कॉज़ेज़ स्वरूप ही हैं। ऐसा है न, यह बात बाहर ज़ाहिर में नहीं कह सकते कि विषय कॉज़ेज़ नहीं हैं, सिर्फ इफेक्ट ही हैं । जो कॉज़ेज़ को कॉज़ेज़ समझते हैं, उनके लिए विषय इफेक्ट है।