Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 293
________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता : हास्य को भी नो- कषाय कहा गया है । हास्य तो आता है, लेकिन कभी न कभी अंत में तो उसे निकालना ही पड़ेगा न ? २५६ दादाश्री : किसी को भी नहीं निकालना है, अपने आप निर्जरा हो जाएगी।‘यह' ज्ञान प्राप्त होने के बाद, अब आप कर्ता नहीं हो, इसलिए निकालने का रहा ही नहीं न ? कर्ता होता तो निकालना होता। अपने यहाँ तो अपने आप निर्जरा होती ही रहती है । हास्य, विषय, सभी की निर्जरा होती रहती है और शायद थोड़ी-बहुत चारित्र मोहनीय बची होगी तो वह अगले एक जन्म में खाली हो जाएगी। कोई विषय का दुरुपयोग नहीं करे इसलिए शास्त्रकारों ने कहा है कि जो विषय अज्ञानी के लिए बंध का कारण है, वही विषय ज्ञानी के लिए निर्जरा का कारण है । लेकिन यदि उसका उल्टा अर्थ नहीं निकाले तो! फिर यदि ऐसा समझ ले कि, 'चलो, यह तो हम पर मुहर लगा दी, इसलिए अब इसमें हर्ज नहीं है।' तो वैसा नहीं चलेगा। इसका दुरुपयोग नहीं कर सकते। इसलिए यह बात ज़ाहिर नहीं कर सकते न ? ऐसा ज़ाहिर नहीं करना चाहिए लेकिन फिर भी बात निकली, तो ज़ाहिर हो जाता है न ? जो शरीर से रिसते हैं न, वे सभी नो- कषाय हैं । शरीर से रिसता है, मन से रिसता है, वाणी से रिसता है, वे तीनों वास्तव में तो नो- कषाय ही हैं। और यह शरीर तो पूरा ही नो- कषाय है, नो-कर्म ही कहा जाएगा इसे ! बड़ा दोष, विषय की तुलना में कषाय का प्रश्नकर्ता : विषय दोष ही बड़ा दोष माना जा सकता है या नहीं ? दादाश्री : यदि आप इस समय 'चंदूलाल' हो, तो दोष माना जाएगा और 'शुद्धात्मा' हो तो मत मानना । फिर कहाँ तक बैठे रहेंगे उसके पास ? हम अपना काम करेंगे या फिर दोष को सिलते रहेंगे ? दोषित दोष करता रहेगा और आप अपना काम करते रहना । जैसे खानेवाला खाता है और दोषित दोष करता रहता है।

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