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संसारवृक्ष की जड़, विषय
प्रश्नकर्ता: दादा, आप से 'ज्ञान' मिलने के बाद हमें यह समझकर रखना होगा।
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दादाश्री : हाँ, रखना है कि यह इफेक्ट ही है।
प्रश्नकर्ता : ऐसे सभी स्पष्टीकरण मिलें इसीलिए यहाँ आकर बैठते हैं और पूछते हैं।
दादाश्री : इसीलिए यहाँ आकर बैठना और स्पष्ट रूप से देख लेना। सारी बातें, ऐसा बताते हैं न ! कोई कानों में इत्र के दो फाहे डालकर आए और लोग मुझसे कहें कि, 'देखिए, यह कितने मौज-मज़े करता है?' तब मैं कहूँगा कि, 'भाई, करने दो न, वे मोक्ष में बाधक नहीं हैं । उसके फाहे यदि कोई निकाल ले और उसके प्रति उसे द्वेष हो जाए तो वह द्वेष मोक्ष में जाने में बाधक है । '
है कुदरती, लेकिन लिमिट में होना चाहिए प्रश्नकर्ता : यह विषय तो कुदरती अवस्था है न ।
दादाश्री : लेकिन उसमें हम ऐसा कर सकते हैं कि कुदरती अवस्था में भी उसकी एक प्रकार की कोई लिमिट होती है ! इसलिए हम यदि चाहें तो उतना पुरुषार्थ कर सकते हैं। आत्मा, वह पुरुष हुआ और पुरुषार्थ करे तो परिवर्तन ला सकता है, वह हल निकाल सकता है! खाने बैठे इसका मतलब क्या यह है कि खाते ही रहो ?
प्रश्नकर्ता: नहीं, बिल्कुल भी नहीं ।
दादाश्री : आप साथ में रहते हो, लेकिन आप कहना कि, 'चंदूभाई क्या-क्या लेंगे ?' तब वह कहे, 'सब्ज़ी, रोटी और थोड़ा सा चावल !' इस पर आप कहें, ‘नहीं, आज ये तीन ही लो न! आज दादाजी के पास सत्संग में जाना है न?' ऐसा करके, समझा-बुझाकर काम लेना । वे फिर वैसे ही लेंगे, उन्हें ऐसा कुछ नहीं है ! उन्हें तो कहनेवाला चाहिए। सलाह देनेवाला चाहिए। और आपको हर्ज भी क्या है ? कौन सा नुकसान है ? कब नहीं