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संसारवृक्ष की जड़, विषय
२५३ यदि दोष विषय का होता तो इन सभी जानवरों में भी कषाय खड़े हो जाते। अत: दोष अज्ञानता का है। इन जानवरों की अज्ञानता गई नहीं है। उनमें अज्ञानता है लेकिन उनके विषय लिमिटेड हैं। इसलिए कषाय होते ही नहीं, कषाय बढ़ते ही नहीं। जबकि लोगों के कषाय तो अन्लिमिटेड होते हैं।
क्रमिक में विचारों द्वारा प्रगति प्रश्नकर्ता : एकावतार में कर्म खपा देने हों तो वे कैसे खप सकते हैं?
दादाश्री : ज्ञानीपुरुष तो कुछ भी कर सकते हैं, अक्रम विज्ञानी जो चाहें सो करें! क्रमिक के ज्ञानी नहीं खपा सकते। वे तो खुद का भी नहीं खपा सकते और सामनेवाले का भी नहीं खपा सकते। खुद का तो सिर्फ कितना खपा सकते हैं? कि विचारों द्वारा जितने कर्म खपाए जा सकते हैं, उतने कर्म खपा देते हैं। क्योंकि उनके विचार ज्ञानान्क्षेपकवंत होते हैं। यानी लगभग उसके जैसा, संपूर्ण नहीं, लेकिन विचारधारा निरंतर चलती रहती है। लेकिन वह आत्मा नहीं है। आत्मा तो, विचारधारा से आगे का निर्विचार पद है और निर्विचारपद से भी आगे का स्टेशन आत्मा है। विचारधारा, वह आत्मा नहीं है, लेकिन 'क्रमिक मार्ग' में आत्मा प्राप्त करने का वही एक साधन है, अन्य कोई साधन नहीं है।
प्रश्नकर्ता : ‘कर विचार तो पाम' ऐसा कहते हैं न! दादाश्री : हाँ, उतना ही साधन है।
हम कहते हैं कि 'ये लोग संसार में स्त्री के साथ रहते हैं, फिर भी इनके आर्तध्यान और रौद्रध्यान बंद हो गए हैं।' ऐसी बात क्रमिक मार्गवाले कैसे 'एक्सेप्ट' करेंगे?
प्रश्नकर्ता : ऐसा क्यों?
दादाश्री : उनकी जानकारी ऐसी हो गई है कि विषय में से ही कषाय उत्पन्न होते हैं, इसलिए विषय बंद हो जाने चाहिए। वे लोग तो