Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 289
________________ २५२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता : लेकिन विषय आए, तभी कषाय उत्पन्न होते हैं न? दादाश्री : नहीं। सभी विषय, विषय ही हैं, लेकिन जब विषय में अज्ञानता होती है, तब कषाय खड़े होते हैं और ज्ञान हो तो कषाय नहीं होते। कषाय कहाँ से जन्मे? तब कहे, विषय में से। अतः ये जितने भी कषाय खड़े हुए हैं, वे सब विषय में से खड़े हुए हैं। लेकिन इसमें विषय का दोष नहीं है, अज्ञानता का दोष है। रूट कॉज़ क्या है? अज्ञानता। क्रमिक मार्ग में पहले विषय बंद करने पड़ते हैं, तभी कषाय बंद होते हैं। इसीलिए तो सभी विषयों का त्याग कर-करके ढक्कन लगाना पड़ता है न! वे भी ऐसे पेचवाले ढक्कन कि जो अपने आप खुल न जाएँ। ऐसे ढक्कन नहीं होंगे तो ढक्कन ढीले पड़ जाएँगे। भोजन में सबकुछ एक साथ मिलाकर खाते हैं ताकि जीभ का विषय नहीं चिपके। उसी प्रकार आँख का विषय नहीं चिपके, कान का विषय नहीं चिपके, नाक का विषय नहीं चिपके, स्पर्श का विषय नहीं चिपके, ऐसे पेचवाले ढक्कन लगाने पड़ते हैं। दोष है अज्ञानता का प्रश्नकर्ता : जो-जो विषय चिपकें और उन विषयों में साथ में ज्ञान भी रहे कि इसका परिणाम यह आएगा, तो उसे नहीं चिपकेगा न? दादाश्री : 'ऐसा परिणाम आएगा' वह नहीं देखना है। वह तो सब चिपकेगा ही। विषय के आराधन का मतलब ही है चिपकना। अज्ञानता से वह चिपक जाता है। यह हमारा साइन्स एक नई ही खोज है, अद्भुत खोज है! क्रमिक मार्ग में पाँचों इन्द्रियों को ढक्कन लगाते-लगाते करोड़ों जन्म बीत जाते हैं। अरे, एक ढक्कन लगाने में ही करोड़ों जन्म बीत जाते हैं न! आप यदि समकित में रहो तो आपको विषय बाधक नहीं होगा। क्योंकि विषय, पिछले जन्म का परिणाम है, इस जन्म का नहीं है वह। समकित में रहना और कषाय, वे दोनों एक साथ नहीं हो सकते। कषाय तो परभव का कारण है। इस तरह यदि कषाय और विषय को जुदा किया होता तो लोग विषय से इतने भयभीत नहीं होते, लेकिन वे तो कहेंगे कि ऐसा तो हो ही नहीं सकता न! विषय तो होना ही नहीं चाहिए न?

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