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विषय भोग, नहीं हैं निकाली
२४९ कि फिर दोनों को चैन से बैठने ही नहीं देते। क्योंकि इन बाहर भटकनेवालों को 'जर्न्स' बहुत ही नुकसान करते हैं। जिसका खुद को पता नहीं चलता। इसलिए मैं कहता हूँ न कि एक से शादी कर। क्योंकि यह तेरी नेसेसरी चीज़ है। खुद ने पूर्वजन्म में ब्रह्मचर्य के भाव नहीं किए होते इसलिए शादी करनी पड़ती है।
खुद की स्त्री के साथ के विषय में भी नियम होना चाहिए। कृपालुदेव ने कहा है कि महीने में दो दिन, पाँच दिन या सात दिन के लिए तू ज्ञानीपुरुष की उपस्थिति में तय कर, तब फिर वे ज्ञानीपुरुष यह ज़िम्मेदारी खुद के सिर ले लेते हैं। और फिर हम विधि कर देते हैं। हमारी आज्ञा हो जाए तो हर्ज नहीं है। हमारी आज्ञानुसार हो, उसे कोई बाधा नहीं आएगी।
प्रश्नकर्ता : इस ज्ञान के बगैर वह लक्ष्य बैठना बहुत मुश्किल है।
दादाश्री : इस ज्ञान के बगैर फिट ही नहीं होगा न? फिर भी ये साधु हैं, उन्हें फिट हो जाता है। उसका क्या कारण है? पिछले जन्मों में उन्होंने ऐसी भावना की होती है कि 'विषय नहीं भोगना है,' आज उसका फल आया है। और उन्हें वह मिलता भी नहीं है। उन्हें वह अच्छा भी नहीं लगता।