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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
तो उसके जैसा और कोई पद है ही नहीं! ये 'फाइलें' तो परवशता लाती हैं। क्योंकि दोनों के द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव अलग ही होते हैं न? एक पति मुझसे कह रहा था कि, 'मेरी बीवी मुझसे ऐसा कह रही थी कि आप मुझे पसंद नहीं हैं। आप मुझे छूना नहीं।' इसका क्या करें? यह गाड़ी किस गाँव पहुँचेगी अब? उसकी तुलना में इन ब्रह्मचारियों को कोई परेशानी ही नहीं है न! उनका किसी से क़रार ही नहीं है न और वे कहते हैं कि हमें क़रार करना भी नहीं है। और जिन्होंने क़रार किए हैं, उनसे कहता हूँ कि पूरा करो।
प्रश्नकर्ता : जो ऐसा कहते हैं कि 'क़रार नहीं करने हैं, वे रोक नहीं रहे हैं?
दादाश्री : जान-बूझकर कोई गड्ढे में गिरता है? खुला गड्ढा दिखाई दे, फिर उसमें कौन गिरेगा? अब हमें ऐसी गरमी नहीं लगती। गरमी लगे तो ठंडक खोजने कीचड़ के गड्ढे में गिर। इन ब्रह्मचारियों की 'फाइलें' नहीं है, इसलिए यथार्थ सुख बर्तता है! 'फाइल' तो हमें कहेगी कि, 'अब इस समय आप मित्र के यहाँ मत जाना।' तो वहाँ आपका क्या हाल होगा? अरे! भगवान के ताबे की बजाय तेरे ताबे में रहने का वक्त आ गया मेरा?
प्रश्नकर्ता : क़रार किए हैं।
दादाश्री : हाँ, क़रार किए हैं। यानी उसमें कोई हर्ज नहीं है। दृष्टि मत बिगाड़ना। बाहर देखने में बहुत जोखिमदारी है। वह हरहाया पशु कहलाता है। मैं तो कहता हूँ कि 'हरहाया पशु बनने के बजाय शादी कर ले। मेरे सामने शादी कर, मैं तुझे अशीर्वाद दूंगा!' क्या मैं गलत कह रहा हूँ? ऐसी छूट किसी ने दी है ? इतनी छूट दी है ? और इसके बिना इन्सान बेचारा मोक्षमार्ग पर कैसे जा पाएगा? जो इस रोग से ग्रस्त है, वह कैसे जा पाएगा? यह तो विज्ञान है, इसलिए 'सेफसाइड' कर देता है!
अक्रम विज्ञान क्या कहता है? पुद्गल का जोर कम हो, ऐसे संयोग हैं ही कहाँ अभी? जब