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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
जो व्यक्ति खाना खा चुका हो, उसे यदि फिर से खाने के लिए बैठाएँ तो वह बहुत शर्माएगा, लेकिन फिर वह खाएगा ज़रूर। लेकिन वह क्या करेगा? क्या वह सचमुच खाएगा? इसी तरह से विषय में होना चाहिए। विषय-विकार तो देखना भी अच्छा नहीं लगे, सोचते ही कँपकँपी आ जाए, सोचते ही उल्टी होने लगे, ऐसा होना चाहिए।
'डिस्चार्ज' किस भाग को कहते हैं, इसे लोग समझते नहीं हैं और 'डिस्चार्ज' का अर्थ अपनी भाषा में करते हैं।
प्रश्नकर्ता : 'डिस्चार्ज' किस भाग को कहते हैं?
दादाश्री : चलती गाड़ी से कितनी बार गिर जाते हो? तुम चलती गाड़ी से गिर जाओ तो वह 'डिस्चार्ज' कहलाएगा। वहाँ तुम गुनहगार नहीं हो, लेकिन क्या कोई जान-बूझकर गिरता है क्या? वहाँ उसकी ज़रा सी भी इच्छा होती है? आपको यह बात समझ में आई? बात समझने योग्य है न?
प्रश्नकर्ता : बिल्कुल। पक्का समझ में आ गया।
दादाश्री : कान पकड़कर कह रहे हो क्या? वर्ना 'डिस्चार्ज' की बात में तो भीतर पोल मारता है। सिर्फ इस विषय के बारे में ही पोल नहीं मारनी है।
प्रश्नकर्ता : पोल कैसे मारते हैं?
दादाश्री : जैसे चलती गाड़ी से गिर जाए, उसे हम 'डिस्चार्ज' कहते हैं। उसी तरह खुद के घर में भी नियम तो होना चाहिए न? यह तो ऐसा है न, कि खुद के हक की स्त्री के साथ का विषय, वह अनुचित नहीं है। लेकिन फिर भी साथ-साथ इतना समझना चाहिए कि उसमें अनेकों 'जर्स' मर जाते हैं। अत: अकारण तो ऐसा होना ही नहीं चाहिए न? कारण हो तो बात अलग है। वीर्य में 'जर्स' ही होते हैं और वे मानवबीज के होते हैं। अतः जब तक हो सके, तब तक इसमें सावधान रहना। यह हम आपको संक्षेप में बता रहे हैं, बाकी इसका तो अंत ही नहीं है न!