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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
समझ जाता है कि, 'ये तो हमारे विरोधी हो गए हैं, अब मेरा वोट नहीं चलेगा।' लेकिन भीतर कपट है, इसलिए लोग नहीं बोलते और ऐसा बोलना उतना आसान भी नहीं है न ! पब्लिक को यदि सही सिखाया जाए तो पब्लिक तो सबकुछ समझ जाए, क्योंकि भीतर आत्मा है न ? इसलिए देर नहीं लगती। लेकिन कोई कहता नहीं है न ? लेकिन वह कहे कैसे ? क्योंकि उनके भीतर भी पोल रहती है न ? मैं बीड़ी पीऊँ और आपसे ऐसा कहूँ कि बीड़ी नहीं पीनी चाहिए तो मेरा प्रभाव कैसे पड़ेगा ? मेरा बिल्कुल स्ट्रोंग होगा, साफ होगा तभी मेरा प्रभाव पड़ेगा। यदि एक ही मनुष्य प्योर हो तो कितने ही मनुष्यों का काम हो जाए । अतः खुद की प्योरिटी चाहिए । आप चाहे संसारी हों या त्यागी हों, भगवान को कुछ लेना-देना नहीं है, वहाँ तो प्योरिटी चाहिए । इम्प्योर गोल्ड वहाँ काम नहीं आएगा। भगवा हों या सफेद हों, लेकिन जब तक इम्प्योर होगा, तब तक काम नहीं आएगा । आपका प्रभाव ही नहीं पड़ेगा न ? शीलवान बनना चाहिए ।
चार्ज - डिस्चार्ज की भेदरेखा
अपना यह विज्ञान ऐसा है कि काम कर दे ! लेकिन यदि उसके प्रति सिन्सियर रहे और हमारे कहे अनुसार रहे तो विषय की निवृत्ति हो जाए, वर्ना विषय का स्वभाव ही ऐसा है कि यदि एक ही बार विषय भोग किया हो तो वह व्यक्ति तीन दिनों तक किसी भी प्रकार का ध्यान नहीं कर सकता ! एक ही बार के विषय से तीन दिनों तक किसी भी प्रकार से ध्यान नहीं हो पाता, ध्यान हो ही नहीं पाता न ! स्थिर ही नहीं हो पाता न ! फिर इन्सान क्या करे ? कितना करे ? इसीलिए ये जैन आचार्य त्याग लेकर बैठे हैं न ! यह वीतरागों का धर्म विलासियों का धर्म नहीं है ! विषय हो तो समझ से छूट जाना चाहिए। विषय अच्छा कैसे लगता है ? मुझे तो यही आश्चर्य होता है! विषय पसंद है, उसका मतलब यही है कि समझ ही नहीं है
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प्रश्नकर्ता : विषय- कषाय की जलन होती है न ?
दादाश्री : जलन तो लाखों मन भारी हो सकती है। उससे मतलब नहीं है। जलन तो पुद्गल को होती है।
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