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विषय भोग, नहीं हैं निकाली
२३५ प्रश्नकर्ता : मेरी इच्छा नहीं हो और 'फाइल नंबर टू' की इच्छा से गड्ढे में गिरना पड़े, तो क्या करना चाहिए? फाइल का समभाव से निकाल करना चाहिए?
दादाश्री : फाइल का समभाव से निकाल करना ही पड़ेगा न! जब तक नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट नहीं मिलता, तब तक क्या हो सकता है ? जब मजबूरन करना पड़े, तब प्रकृति का नाश होता है। पहले शादी में जाते थे, तब राज़ी-खुशी से जाते थे, और अब मजबूरन शादी में जाना पड़े, तब वहाँ जाने से पहलेवाली प्रकृति का नाश होता है।
अत: इस प्रकार विषय का हर तरह से पृथक्करण करने के बाद ऐसी स्टेज आती है कि इस विज़न से थोड़ी-थोड़ी जागृति उत्पन्न होती है। फिर, विज़न यानी धुंधले विज़न से, उसे विषय रहता है, लेकिन खुद को पसंद नहीं होता। जैसे भूख लगी हो और खाना पड़े, नहीं भाए फिर भी खाए, इस प्रकार तंग आकर भोगना पड़ता है। जबकि दूसरा जो राज़ीखुशीवाला भोगवटा (सुख या दुःख का असर) होता है, वह भोगवटा तो बहुत मूर्छापूर्वक होता है। इस तरह के भोगवटे के बाद अनेकों स्टेप्स गज़रने के बाद अंतिम भोगवटा होता है जिसमें उसे पूर्ण अरुचि होती है। भोगवटा भी दो प्रकार का होता है। एक इच्छापूर्वक और एक इच्छा नहीं होने के बावजूद कर्म के उदय से। उदयकर्म पूरा नहीं हुआ हो, तब क्या हो सकता है? उदयकर्म पूरा हो जाए तभी छूट सकता है, लेकिन तब तक उसे भुगतना तो पड़ेगा। तब क्या होता है ? अरुचि उत्पन्न होती रहती है।
सिर्फ इस विषय में ही हम मर्यादा रखते हैं। मर्यादा नहीं रखें तो उदयकर्म के नाम पर दुरुपयोग करेगा। 'मुझे उदयकर्म बाधक है' ऐसे कहता फिरता है। वास्तव में उदयकर्म किसे कहते हैं? उदय के अधीन। खुद की इच्छा ही नहीं होती!
प्रश्नकर्ता : पहले का चार्ज करके लाया हो और समझकर समभाव से निकाल करे तो?
दादाश्री : समझकर ही समभाव से निकाल करते हैं, फिर भी अभी