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विषय सुख में दावे अनंत
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होता है। इससे सामनेवाले व्यक्ति के मन में ऐसा होता है कि ये लोग तो आनंद भोग रहे हैं और हम रह गए। वे भगवान से माँगते हैं कि मुझे भी कुछ दीजिएगा।
प्रश्नकर्ता : ऐसा कोई थोड़े ही माँगता है ? बल्कि ऐसा ही सोचता है कि यह तो गंदगी है।
दादाश्री : यह विषय भी वैसा ही है। खुजली जैसा ही है यह। सिर्फ घर्षण है। उस घर्षण से 'इलेक्ट्रिसिटी' उत्पन्न होती है, फिर वह जब वापस आता है, 'बेक' मारता है, तो वह जोड़ों को तोड़ देता है। उसमें कहीं सुख होता होगा? उसमें आत्मा नहीं होता। उसमें चेतन भी नहीं होता। चेतन तो सिर्फ उसका निरीक्षक ही है। यानी यह तो विपरीत दशा को खुद सुख मान लेता है। ___यह ज्ञान तो बहुत अच्छा है, लेकिन अब उस चेतक को मज़बूत कर लेना है। जब लगे कि विषय में सुख है, तो वहाँ पर 'चेतक' बैठाने की ज़रूरत है। विषय का आराधन तो इस तरह से होना चाहिए कि जैसे पुलिसवाला ज़बरदस्ती करवा रहा हो। यह चेतक हमने आपमें बैठा दिया है। लेकिन इस चेतक को इतना मज़बूत कर लेना है कि पुलिसवाले का
भी विरोध करे। लेकिन यदि आप उस चेतक की नहीं सुनोगे तो चेतक निर्माल्य हो जाएगा। आप यदि उस चेतक का सम्मान करोगे, उसे खुराक दोगे तो उसे पुष्टि मिलेगी! आप उस चेतक के ज्ञाता-दृष्टा हो और चेतक 'चंदूभाई' को चेतावनी देता रहेगा, 'चंदूभाई' चेतक की सुनते हैं या नहीं, वह आपको देखना है।
सुख की 'बिलीफ' तो स्वरूप में ही रहनी चाहिए। विषय में सुख है, ऐसा 'बिलीफ' में रहना ही नहीं चाहिए। वह तो, केवलदर्शन की तरह स्वरूप में ही सुख है, ऐसा 'बिलीफ' में रहना चाहिए। इस तरह यदि चेतक मज़बूत कर लिया तो फिर हर्ज नहीं।