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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
करके छोड़ दिया। उसका एक कर्म ज़्यादा बँधता है। ऐसे अहंकार से पुण्यकर्म में वृद्धि होती है ।
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आज तक नासमझी से चले अवश्य हैं, लेकिन यह ज्ञान लेने के बाद तो कितनी समझ उत्पन्न होती है । अतः समझदारी सहित होगा तो वैराग्य आएगा और फिर तोड़-फोड़कर विषय की धज्जियाँ उड़ा देगा । ऐसा कोई नियम नहीं है कि कर्म बदलेंगे ही नहीं । कर्म बदल सकते हैं । अज्ञानी का कर्म कैसे बदलता है ? अभी कोई लेनदार आए, तब उस कर्म का उदय तो आया, उसे पूरा तो करना ही पड़ेगा न ? लेकिन वह पड़ोसी से पचास रुपये लेता है और लेनदार को पैंतालीस देकर पाँच खुद के पास रखता है। इससे एक कर्म पूरा हुआ और दूसरा कर्म खड़ा किया। इस प्रकार पुराना कर्म तो समाप्त हो जाता है लेकिन नया कर्म खड़ा करते हैं । ये संसारी इसी प्रकार से सभी कर्म पूरे करते हैं । लेकिन क्या ये सभी कर्म चुका देते हैं ? नहीं, यह तो नया ओवरड्राफ्ट लेकर चुकाते हैं !
प्रश्नकर्ता : ओन अकाउन्ट पूरा करते हैं I
दादाश्री : हाँ, लेकिन इससे आनेवाली, अगले जन्म की ज़िम्मेदारी का उसे भान नहीं है। वे फिर यहाँ से जानवर में चले जाते हैं । लेकिन इतना सुधरा, इतना भी बहुत अच्छा हुआ न, क्योंकि जो रोज़मर्रा का आचरण है, वे कुछ हद तक चलाया जा सकता है, लेकिन सिर्फ विषय संबंध में ही नहीं चलाया जा सकता। बाकी सभीकुछ चला सकते हैं । अन्य सभीकुछ हम चला लेते हैं । यदि शराब पीता हो तो कभी-कभी चला लेते हैं, लेकिन आपको इतना समझना चाहिए कि दादाजी इसे दरगुज़र कर रहे हैं! लेकिन आपको क्या करना चाहिए? दिन-रात 'यह बहुत गलत चीज़ है, बहुत गलत चीज़ है', ऐसे जाप करने चाहिए।
प्रश्नकर्ता : यानी उसके प्रति खेद ही होना चाहिए ?
दादाश्री : निरंतर खेद रहना चाहिए, तभी हमारा यह कहना कि ‘चला लेंगे', वह आपके काम आएगा, वर्ना दादाजी अलाउ करते हैं उसका मतलब ऐसा नहीं है कि कोई हर्ज नहीं है। जबकि विषय संबंध को तो