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विषय सुख में दावे अनंत
के उदय की वजह से मना किया है तो समझदारी से चलेगी। लेकिन ऐसा भान नहीं है। वह तो कहेगी 'इन्होंने ही नहीं किया । '
प्रश्नकर्ता : मोह घेर लेता है ।
दादाश्री : मोह घेर लेता है । और कौन कर रहा है, यह खुद को मालूम नहीं है। वह तो ऐसा ही समझती है, कि 'ये ही कर रहे हैं । नहीं, वे ही नहीं आ रहे हैं । इनकी ही इच्छा है, नहीं आने की ।'
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प्रश्नकर्ता : ये पिक्चर, नाटक, साड़ी, घर, फर्नीचर वगैरह का मोह है, उसमें हर्ज नहीं है न ?
दादाश्री : ऐसा कुछ नहीं है, बहुत हुआ तो उसके लिए आपको मार पड़ेगी। ‘इस' सुख को नहीं आने देंगे, लेकिन ये सामने दावा नहीं करेंगे न? जबकि वे तो 'क्लेम' करेंगे, इसलिए सावधान हो जाओ ! भोगे राग से, चुकाए द्वेष से
प्रश्नकर्ता : विषय राग से भोगते हैं या द्वेष से ?
दादाश्री : राग से। उस राग में से द्वेष उत्पन्न होता है । यह मिश्रचेतन तो ‘फाइल' कहलाती है, लेकिन पूर्वजन्म का हिसाब बंध चुका है, 'देखतभूली' का हिसाब हो चुका है, इसलिए उससे बच ही नहीं सकता न? उसकी इच्छा नहीं हो, आज तय किया हो, फिर भी शाम को जा पहुँचता है, बच ही नहीं सकता। वह आकर्षण से खिंच जाता है। अंदर से वह आकर्षण होता है और खुद यह समझता है कि 'मैं गया ।' नहीं जाना हो फिर भी चला जाता है। इसका क्या कारण है ? कि वह आकर्षण से खिंच जाता है।
प्रश्नकर्ता : जो मिश्रचेतन से संबंधित फाइल होती है, उसमें एक ओर जागृति भी रहती है, एक ओर मन में मिठास भी लगती है, दूसरी ओर वह अच्छा नहीं लगता । ज्ञान मना करता है कि यह सब योग्य नहीं है। इसलिए द्विधा होती रहती है।
दादाश्री : वह पसंद नहीं है, उसका मतलब कि वह छूट रहा है !