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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
में लें ऐसे नहीं होते। इस मिश्रचेतन में तो आमने-सामने दावे दायर होते हैं। एक बार जाल में आने के बाद निकलना मुश्किल है । उस झंझट में फँसने के बाद, उसमें से कोई निकल नहीं पाया है । हमारा यह विज्ञान ऐसा है कि दोनों को ज्ञान दे दें तो दोनों समभाव से निकाल करना सीख जाते हैं और हल आ जाता है। वर्ना लाखों जन्मों तक भी नहीं छोड़े। आपको छोड़ने की इच्छा हो, तब वह आपको नहीं छोड़ता और उसे छोड़ने की इच्छा हो तब आप उसे नहीं छोड़ते। इस तरह कभी भी दोनों का टाइमिंग मिल नहीं पाता और इंजन मोक्ष की ओर जा नहीं पाता, ऐसा है यह मिश्रचेतन! खाने-पीने में परेशानी नहीं है । चार पूरणपूरी खाकर सो जाना। 'दादा' का नाम लेकर वह भोग भोगना, लेकिन यह मिश्रचेतन तो महा जोखिम है! यही संसार का बीज है । एक राजा को जीत लिया तो उसकी सेना अपने काबू में आ गई । उसका राज्य भी अपने काबू में आ गया। कृपालुदेव ने तंग आकर यह कहा है । जो संसार में लटकानेवाला है, उस पर उन्होंने बहुत भार दिया है कि क्या ऐसी हालत ? वे खुद कहते थे कि, 'संसार से तो बहुत समय से, कई जन्मों से तंग आ चुका था ।' लेकिन आखिर उन्होंने काट डाला । यहाँ से काटा, वहाँ से काटा और तेज़ी से खत्म कर दिया। ग़ज़ब के पुरुष थे, ज्ञानीपुरुष थे ! वे तो चाहे सो करें ! विषय तो जीवित जोखिम है। अन्य सभी जोखिम तो मृत कहलाते हैं। वे तो बहुत पुण्यशाली पुरुष थे इसलिए सभी जोखिम खत्म हो गए और खुद पार उतर गए और बैर नहीं बँधे ।
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दो तरफा सुख, करें दावा
विषय सुख दो तरफा है । अन्य इन्द्रिय सुख एक तरफा हैं। और यह दो तरफावाला तो दावा करेगा । वह कहे कि, 'सिनेमा देखने चलिए । ' और तब आप कहो कि, 'नहीं, आज मुझे ज़रूरी काम है ।' तब वह दावा करेगी। होता है या नहीं होता ऐसा ?
प्रश्नकर्ता : ऐसा ही होता है । इसीलिए ऐसा होता है न ?
दादाश्री : अब यदि पत्नी पहले से ही जानती हो कि उनके कर्म