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विषय सुख में दावे अनंत
है, बीज में से बीज डलता है, बीज में से बीज डलता है । वह सेंकना नहीं जानता है न? कैसे सेंका जाए, ऐसा जानता नहीं है न ?
प्रश्नकर्ता : जब तक सेंकना नहीं जानता, तब तक चलता ही
रहेगा ?
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दादाश्री : हाँ, बस बीज पड़ते ही रहते हैं ।
प्रश्नकर्ता : आपने ऐसा भी कहा है कि कुछ चारित्रमोह ऐसे प्रकार के भी होते है कि जो ज्ञान को भी उड़ा दें । तो वह किस प्रकार का चारित्रमोह ?
दादाश्री : वह विषय में से खड़ा होनेवाला चारित्रमोह है। वह फिर ज्ञान को और सबको उड़ा देता है । अभी तक विषय से ही यह सब रुका हुआ है। मूल विषय है और उसमें से इस लक्ष्मी पर राग हुआ, और उसका अहंकार है। अतः यदि मूल विषय चला जाए, तो सब चला जाएगा। विषय बीज सिकता है ऐसे
प्रश्नकर्ता : यानी बीज को सेंकना आना चाहिए, लेकिन उसे कैसे सेंकना है ?
दादाश्री : वह तो अपने इस प्रतिक्रमण से । आलोचना-प्रतिक्रमणप्रत्याख्यान से।
प्रश्नकर्ता : वही ? दूसरा कोई उपाय नहीं है ?
दादाश्री : दूसरा कोई उपाय नहीं है । तप करने से तो पुण्य बँधता है, समझ में आया न? और बीज को सेंकने से निबेड़ा आ जाता है।
यह संसार अब्रह्मचर्य से खड़ा है और ऐसा न जाने कितने ही समय तक चलता रहेगा। जो निकाचित दुःख हैं, वे अब्रह्मचर्य के हैं। निकाचित दुःख यानी सहन करने पर भी हटते नहीं । चाहे कितने भी उपाय करें तो भी हट नहीं । अन्य सभी दुःख तो आसानी से चले जाते हैं। जबकि निकाचित में तो दूसरे व्यक्ति का क्लेम रहता है । अन्य चीजें क्लेम नहीं करतीं, लेकिन