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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
प्रश्नकर्ता : यानी ऐसा ही हुआ न कि विषय से ही यह सारा संसार खड़ा हो जाता है?
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दादाश्री : विषय आसक्ति से उत्पन्न होते हैं, और फिर उनमें से विकर्षण होता है । जब विकर्षण होता है तब बैर बँधता है और बैर के ‘फाउन्डेशन' पर यह जगत् खड़ा है। आम के साथ बैर नहीं है और आलू के साथ भी बैर नहीं है। आलू में जीव हैं, बहुत सारे जीव हैं, लेकिन वे बैर नहीं रखते हैं। उनसे केवल नुकसान क्या होता है कि आपको दिमाग़ से ज़रा दिखना कम हो जाता है, आवरण बढ़ाता है । अन्य किसी तरह का बैर नहीं रखते । बैर तो मनुष्य में आया हुआ जीव रखता है
इस मनुष्य जाति में ही बैर बंधा हुआ है । यहाँ से जाकर, वहाँ साँप बनता है और फिर काटता है । बिच्छू बनकर काटता है। बैर बाँधे बगैर कभी भी ऐसा कुछ नहीं हो सकता।
प्रश्नकर्ता : आज देखने में कोई संबंध नहीं है, लेकिन एक-दूसरे के बीच कोई बैर खड़ा हो, तो क्या वह पहले कोई विषय संबंध हुआ ही होगा ?
दादाश्री : बैर सिर्फ पूर्वभव के उदय की वजह से ही होता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन वह विषय के कारण या बिना विषय के भी हो सकता है?
दादाश्री : हाँ, विषय के बिना भी हो सकता है। अन्य अनेक कारण हो सकते हैं। लक्ष्मी के कारण बैर बँधता है, अहंकार के कारण बैर बँधता है, लेकिन यह विषय का बैर बहुत ज़हरीला होता है । सबसे ज़्यादा ज़हरीला, इस विषय का बैर । पैसों का, लक्ष्मी का, अहंकार से बैर बँधा हुआ हो, तो वह भी बहुत ज़हरीला होता है ।
प्रश्नकर्ता : कितने जन्मों तक चलता है ?
दादाश्री : अनंत जन्म तक भटकता रहेगा। बीज में से बीज डलता