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[ ११ ] चारित्र का प्रभाव
चारित्र की नींव, मोक्षपथ का आधार
खाओ-पीओ, मज़े करो। बहुत सारी चीजें हैं खाने के लिए। एक आदमी को कोई विकारी आदत थी । उस आदत को छुड़वाने के लिए मैंने क्या कहा, ‘इस गंदगी में क्यों पड़े रहते हो ? अन्य चीजें इस्तेमाल करो न? सेन्ट, इत्र वगैरह रखो न ! यह आपको अच्छा नहीं लगेगा ?' तब बोला, 'यह मुझे अच्छा लगेगा ?' मतलब इस तरह मन को समझा-बुझाकर काम निकाल लेना है। एक गोली से अच्छा नहीं लगे, तो दूसरी गोली देना, दूसरी से अच्छी नहीं लगे तो तीसरी। इस तरह (ऐसे तरह-तरह) की जो गोलियाँ बताई हैं, वे देना। उनमें से किसी एक गोली में मन लग गया कि चल पड़ा। फिर उस गंदगी से छूट जाएगा न !
चारित्र में स्ट्रोंग हो गया तो जगत् जीत जाएगा। जगत् जीतने के लिए, चारित्र में स्ट्रोंग हो, बस इतना ही चाहिए। कपड़े कैसे भी पहने, उसमें कोई हर्ज नहीं है। व्यवहार चारित्र का और कपड़ों का कोई लेना-देना नहीं है। कपड़ों के बारे में तो एक का मत ऐसा है कि कपड़े बिल्कुल होने ही नहीं चाहिए। किसी दूसरे का मत ऐसा है कि सफेद कपड़ा लपेटना चाहिए। लेकिन आप कोट - पतलून पहनो तो भी हर्ज नहीं है। वे सभी मत व्यवहार के हैं। खाने की चीजें कोई भ्रांति जैसी चीज़ नहीं हैं । यदि जलेबी मुँह में रखें, तो बड़े लोगों को भी मीठी लगती है न? नहीं लगती ? इसलिए यदि सिर्फ ‘चारित्र' जीत लिया तो सारा जगत् जीत लिया। बाकी खाओपीओ उसमें मुझे कोई एतराज़ नहीं है । कम- ज़्यादा खाओगे तो कोई एतराज़ नहीं करेगा न ? आप इत्र ज़्यादा लगाओ तो लोग एतराज़ करते हैं क्या ?