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चारित्र का प्रभाव
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हैं और ये तो शीलवान पुरुष कहलाते हैं। इसलिए इन्हें खुद को सदैव सुख ही रहता है और इन्हें देखते ही लोगों में परिवर्तन होने लगे, इतनी ही ज़रूरत है हमें। बाकी उपदेश देने से परिवर्तन नहीं होता।
शीलवान होना तो बहुत ऊँची चीज़ है। आत्मा मोक्ष स्वरूप है। जब से वह रियलाइज़ हुआ, तभी से मोक्ष स्वरूप है। लेकिन पहले शीलवान बनना पड़ेगा, उसके गुण उत्पन्न होने चाहिए। खुद शीलवान हुआ कि उसके बाद जगत् में सभी उसके निमित्त से बदल जाएँगे। जो मशीनरी उल्टी चल रही थी, बाद में वह सीधी हो जाएँगी।
कैसे लक्षण शीलवान के ! प्रश्नकर्ता : शीलवान के क्या-क्या लक्षण होते हैं, वे जानने हैं।
दादाश्री : शीलवान में मॉरेलिटी, सिन्सियरिटि, ब्रह्मचर्य आदि सब होता है और फिर सहज नम्रता होती है। सहज यानी नम्रता रखनी नहीं पड़ती। सहज रूप से सामनेवाले के साथ नम्र रहकर ही बात करता है।
और फिर, सहज सरलता होती है। सरलता रखनी नहीं पड़ती। जैसे मोड़ना चाहो वैसे मुड़ जाते हैं। उनका संतोष सहज होता है। इतने से ही चावल
और कढ़ी परोसें न, तो वे सिर उठाकर देखते नहीं हैं। सहज संतोष! उनकी क्षमा भी सहज होती है। उनका अपरिग्रह और परिग्रह दोनों सहज होते हैं। यानी ऐसी कितनी ही बातें सहज हों तब समझना कि ये भाई शीलवान
हैं
प्रश्नकर्ता : लेकिन शीलवान पुरुष मोक्ष में जाता है क्या? दादाश्री : वही दूसरों को मोक्ष दे सकता है!
प्रश्नकर्ता : तो फिर यह जो गुण ग्रहण करने की बात है, वृत्तियों पर कंट्रोल, वह तो अहंकार से हुआ।
दादाश्री : ऐसे जो अहंकार से हो, वह काम का नहीं है, सहज रूप से होना चाहिए। उसी को शीलवान कहेंगे। वृत्तियों पर कंट्रोल किया, वह तो अहंकार से है। त्याग करते हो, वह अहंकार है और ग्रहण करना