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खंड - २ आत्मजागृति से ब्रह्मचर्य का मार्ग
__[१] विषयी-स्पंदन, मात्र जोखिम
विषयों से वीतराग भी डरे थे आत्मा और संयोग, दो ही हैं। इनके बीच तीसरा कोई भूत नहीं है। आत्मा शाश्वत है। संयोग वियोगी स्वभाव के हैं। अब आपको जैसा करना हो, वैसा करो और जो विषयी है, वह 'चंदूभाई' है। उससे आपको' क्या लेना-देना? 'आप' उसके साथ यारी मत करना कि ले यह 'कॉल' दिया, ऐसा करने का भाव नहीं हो, वह जागृति रखना। विषयों से तो भगवान भी डरे थे। वीतराग किसी भी चीज़ से नहीं डरते थे, लेकिन सिर्फ विषय से ही डरते थे। डरते थे यानी कैसा, कि जब साँप आता है, तब हर एक व्यक्ति पैर ऊपर ले लेता है या नहीं ले लेता!
प्रश्नकर्ता : ले लेता है।
दादाश्री : उसमें, खुद का हित नहीं है, ऐसा जानता है इसलिए ले लेता है न?
प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : उसी तरह वीतराग भी इतना समझे कि इसमें हित नहीं