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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
हो जाती है। लेकिन विषय तो आज लालच में फँसाकर अगले जन्म के कर्म बाँध लेता है। यह तो अपने ज्ञान को भी धक्का मारनेवाला है, इतना बड़ा विज्ञान है, उसे भी धक्का मार दे, ऐसा है! इसलिए सावधना रहना!
'देखतभूली' का अर्थ क्या है? मिथ्या दर्शन! लेकिन अन्य सभी तरह की 'देखतभूली' हों तो उसमें हर्ज नहीं है, लेकिन इस विषय से संबंधित ‘देखतभूली' की बहुत बड़ी जोखिमदारी है। अब वहाँ देखतभूली' का उपाय क्या है? आपको ज्ञान मिला हो तो खुद को भूल का पता चलता है कि यहाँ पर भूल हुई, यहाँ मेरी दृष्टि बिगड़ गई थी। वहाँ फिर खुद आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान करके भी धो लेता है। लेकिन जिसे यह ज्ञान नहीं मिला है, वह बेचारा क्या करेगा? उसे तो भयंकर गलत चीज़ को सही मानकर चलना पड़ता है, यह आश्चर्य ही है न?
दृष्टि से कुछ नया दिखा और आँखें आकृष्ट हों तो तुरंत प्रतिक्रमण कर लेना। अनादिकाल से आँखें ही आकर्षित होती रही हैं न? नया माल दिखा कि नज़रें खिंचती हैं। लेकिन नया है ही नहीं। यह तो वही का वही
खून, पीप और हड्डियाँ । वही माल है। सिर्फ चादरों में फर्क है। किसी की 'ब्लेक कॉटन' की, किसी की 'व्हाइट कॉटन' की, किसी की 'यलो कॉटन' की। चादरें सभी अलग-अलग तरह की हैं। इनमें कुछ देखने लायक है ही नहीं, अंदर वही का वही माल है! यह रेशमी चादर में बाँधा हुआ है
और अगर रेशमी चादर में बाँधा हुआ नहीं हो तो घिन आएगी! हमें तो इसमें वही का वही दिखाई देता है और आप तो चादरें देखते रहते हो, लेकिन अंदर माल देखो न! भीतर माल तो वही का वही है न? इसलिए सिर्फ इसी में, यहाँ पर जो मिला हो, जो 'फाइल' है, इतना संतोष रखकर काम लेना और बाकी जो कुछ भी खाना हो, दहीबड़े-आलूबड़े, जितने खाने हों उतने खा लेना! बस इतना सा, यह विषय ही जीतना है। किसी भी तरह, और कुछ नहीं। बाकी तो खाओ-पीओ और मज़े करो न!
जोखिमों का भी जोखिम अर्थात् विषयरोग की जड़ जैसे कि किसीने तम्बाकू बोया हो और उसके साथ दूसरा कोई पौधा