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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
है। वर्ना यदि ऐसा निश्चय हो कि मुझे गिरना ही नहीं है, ऐसे विषय के कुएँ में गिरना ही नहीं है, ऐसा निश्चय होना चाहिए। फिर भी यदि गिर पड़े तो उसका गुनाह माफ़ कर देते हैं। लेकिन जो जान-बूझकर कुएँ में गिरता है, उसका गुनाह माफ़ नहीं करते। लेकिन अपने यहाँ तो मैं सारे गुनाह माफ़ करता हूँ। फिर अब और कितनी माफ़ी दें? जहाँ जोखिम नहीं हो, वहाँ छूट देते ही हैं न, सबकुछ खाने-पीने की छूट देते ही हैं न? क्या नहीं दी है सारी छूट?
यह तो इस काल का आश्चर्य है। यह तो ग्यारहवाँ आश्चर्य है! आदमी स्त्री के साथ रहते हुए जगत् के दुःखों का अभाव अनुभव करे, ऐसा कभी हुआ नहीं है! जहाँ पूरा जगत् दुःखी है, वहाँ संसारी दुःख का अभाव, वह तो सबसे बड़ा पुरुषार्थ कहा जाएगा!
अब आपका यह पूर्ण हुआ, ऐसा कब माना जाएगा? जब आपको देखकर सामनेवाले को समाधि महसूस हो, आपको देखकर सामनेवाला दु:ख भूल जाए, तब पूर्ण हुआ माना जाएगा! आपका हास्य ऐसा दिखाई दे, आपका आनंद ऐसा दिखाई दे कि सभी को हास्य उत्पन्न हो, तब समझना कि खुद के सारे दु:ख गए! आप सभी को अभी टेन्शन रहता है और वह 'टेन्शन' भी हमारी आज्ञा में नहीं रहने के कारण है। आज्ञा तो इतनी सुंदर है और बहुत आसान है। लेकिन अब जो कुछ भोगने का हो, उससे बच नहीं सकते न?! और उसमें हम हस्तक्षेप नहीं कर सकते न! लेकिन कभी न कभी इसमें से बाहर निकल जाओगे। क्योंकि जब सही रास्ता मिल जाए, उसके बाद कोई व्यक्ति मार्ग नहीं चूकेगा न?