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विषयी-स्पंदन, मात्र जोखिम
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तो विषयों में कोई हर्ज नहीं है। और हमने वैसा ही ज्ञान दिया है। इस ज्ञान से अंदर भाव नहीं पलटते, इसलिए बाहर के लिए हमने कोई एतराज़ नहीं उठाया। आप पूरणपूरी खा सकते हो और भीतर आप अपने शुद्धात्मा में रह सकते हो और देख सकते हो। ऐसा है यह विज्ञान। पूरणपूरी में तन्मयाकार हुए बगैर नहीं रह सकते। यदि कोई भक्त हो तो द्वेष करता है कि, 'पूरणपूरी क्यों बना रहे हैं?' यानी 'ऐसी चीज़ नहीं बनानी चाहिए', वर्ना उसीमें चित्त चला जाता है। जबकि पूरी दुनिया तो राग करती रहती है कि 'पूरणपूरी तो बहुत अच्छी है, बनाएँ तो अच्छा।' उसीमें चित्त रहा करता है!
सत्संग से उतरे जंग इसलिए हमने हलका(कम) कर दिया है। इस जगत् ने जो माना है न, स्थूल भाग को ही धर्म की शुरूआत माना है। लेकिन हमने कहा कि स्थूल भाग को ही निकाल दो! इस कलियुग में स्थूल भाग को पकड़ने गए उसी की तो यह सब मार है न! स्थूल भाग तो रोंग ही है और कलियुग में जो स्थूल भाग रूपक में है, उसमें से एक भी राइट नहीं है। इसलिए हमने कहा कि जहाँ दिवाला ही है, बाहर का वह भाग फेंक दो, कट ऑफ कर दो। वह तो रिजल्ट है, उसे अब लेट गो करो।
प्रश्नकर्ता : आज बहुत अच्छा सत्संग मिला।
दादाश्री : हाँ, ब्रह्मचर्य पर बात निकली न! जंग लग गया है, उसे झाड़ना तो पड़ेगा न? जितने भी पुराने गुनाह हुए हों, उन्हें माफ़ कर देने को तैयार हूँ, लेकिन वैसा नया कुछ भी नहीं चलेगा। अब आपको सच्चा सुख मिला है। जब तक सच्चा सुख नहीं था, तब तक आरोपित सुख भोगा। लेकिन अब खुद का सुख, परमसुख कि जो आप जब भी माँगो तब मिले ऐसा है, तो फिर अब आपको यह सब क्यों चाहिए! कोई कहे कि पिछला कर्म बाधा डाल रहा है। तो वह बाधक हो सकता है, लेकिन पिछला कर्म बाधा डाल रहा है, ऐसे कब कह सकते हैं कि मनुष्य अनजाने से कुएँ में गिर जाए न, तब ऐसा कह सकते हैं कि पिछला कर्म बाधा डाल रहा