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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
में कोई नहीं होता। उसका मन पसंद दिखाए तो मोह उत्पन्न होता ही है ।
प्रश्नकर्ता : साठ साल की उम्र में यदि कहा जाए, वह एक बात है और पच्चीस साल की उम्र में कहा जाए, वह दूसरी बात है, तब ऐसी जागृति रहनी चाहिए।
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दादाश्री : जागृति अलग चीज़ है। पच्चीस साल की उम्र में कहना, वह कोई ऐसी आसान बात नहीं है । तब तो मोह से अंध होता है, 'मोहांध' । इसलिए उस समय, देखते समय फिर किस की सलाह मानता है ? मन की और बुद्धि की, खुद का तो कुछ रहा ही नहीं! खुद का डिसीज़न नहीं । मन और बुद्धि की सलाह मानता है, मन तो उकसाता ही रहेगा बार - बार ।
प्रश्नकर्ता : आप हमें ऐसी जड़ी-बूटी बताइए ताकि हम कह सकें कि 'भाई, चौबीस साल की उम्र में यह विचार याद रखना । '
दादाश्री : इतनी सारी अवस्थाओं की जागृति आपको एक साथ नहीं आएगी। हम जो वह थ्री विज़न देते हैं न, उस पर यदि सोचता रहे तो थ्री विज़न उत्पन्न हो जाएगा। वे विचार जब उत्पन्न हो जाते हैं, तो उसकी वजह से कई लोग बच जाते हैं। मुझे पत्र लिखकर बताते हैं कि, 'आपके थ्री विज़न ने तो मेरा बहुत काम कर दिया।' वे सारी अवस्थाएँ नहीं आतीं, यह तो मैं कहता हूँ उतना ही है ! मेरी कही हुई बात से आपको विचार आता है कि, ‘हाँ, यह बात सही है ! '