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विषय सुख में दावे अनंत
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छोड़ो सिर्फ विषय को प्रश्नकर्ता : जबकि आज तो संसार में सर्वत्र यह छोड़ो, इसे कंट्रोल करो, यह खाना, यह मत खाना, ऐसा चल रहा है।
दादाश्री : अरे! खाने-पीने की बात तो छोड़ो! सबकुछ खाओ आराम से! लेकिन सिर्फ यही छोड़ दो न ! सिर्फ इसी में हाथ मत डालना। खाने में सामनेवाले की तरफ से शिकायत नहीं है। जबकि स्त्री तो शिकायत करती है, अनंत अवातर के लिए बैर बाँध देती है। वह छोड़ती नहीं है फिर। इन चार इन्द्रियों के विषयों में से कोई परेशान नहीं करता और यह पाँचवाँ जो विषय है, स्पर्श विषय है, वह तो सामने जीवंत व्यक्ति के साथ है! वह दावा करे, ऐसी है। अत: सिर्फ इस स्त्री विषय में ही एतराज है। यह तो जीती-जागती 'फाइल' है। आप कहो कि, 'अब मुझे विषय बंद करना है।' तब वह कहेगी कि, 'ऐसा नहीं चलेगा। फिर शादी क्यों की थी?' यानी वह जीवित 'फाइल' तो दावा करती है और दावा करे तो वह पुसाएगा ही कैसे? अत: जीते-जागते व्यक्ति के साथ विषय करना ही मत। दावा तो दायर करती ही है लेकिन फिर धमकाती है और आपका तेल निकाल देती है। हम तो भगवान से भी दबकर नहीं रहना चाहते तो फिर क्या ऐसे पत्नी के दबाव में रह सकते हैं? क्या सुख है उसमें? और आप कितने सुखी हो गए? और कितने मोटे हो गए? बल्कि तेज नष्ट हो जाता है। इसमें से क्या पाना है? पूरा पुद्गल का सार खत्म हो जाता है! वह सार शरीर में रहे तब दिमाग़ खिलेगा, वाणी कैसी निकलेगी! जागृति कैसी रहेगी! उसकी तो बात ही अलग है न? उस सार को फिर खो देता है न, तो फिर क्या होगा? कैसी जागृति रहेगी!
विषय से बनें क़रार इन झगड़ों की वजह से सब दावा करते हैं। पति का पूरा होने लगे तब तक तो पत्नी दावा करती है, फिर पति दावा करता है।
यही एक विषय ऐसा है कि स्त्री का और पुरुष का जो विषय है, उसमें यदि आप कहो कि, 'नहीं भाई, अब मेरी इच्छा नहीं रही।' तब