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विषयी-स्पंदन, मात्र जोखिम
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उग जाए, तो उसके उगते ही समझ लेना चाहिए कि यह तम्बाकू नहीं है। इसलिए उसे उखाड़कर फेंक देना चाहिए, वर्ना पौधा बड़ा हो जाएगा। इस काल के खेत तो निरे बिगड़े हुए ही हैं। वर्ना 'यह विज्ञान' काम निकाल दे, ऐसा है। एक-एक को भावी तीर्थंकर बना दे ऐसा है, यह विज्ञान !
बाकी, विषय के लिए तो जैनधर्म में क्या कहा है कि ज़हर खाकर मर जाना, लेकिन विषय मत करना। ब्रह्मचर्य टूटना ही नहीं चाहिए, ऐसा जैनधर्म कहता है। लेकिन हमने यहाँ अक्रम मार्ग में इसमें छूट दी है कि, भाई, पत्नी हो तो घर पर रहना और अन्यत्र दृष्टि मत बिगाड़ना। यदि पत्नी नहीं हो तो प्रतिक्रमण करते रहना। क्योंकि इससे, जो वीर्य अधोगामी जा रहा होगा, वह ऊर्ध्वगामी हो सकता है। वीर्य निरंतर अधोगामी स्वभाव का है। उसे रोको, विधि करो और प्रतिक्रमण करो, तो ऐसे करते-करते सब ऊर्ध्वगामी हो जाएगा।
बाहर कुछ देखा और दृष्टि आकृष्ट हो तो समझना कि यह पहले का पड़ा हुआ बीज है। वह बीज जब उगे, तब आप क्या करते हो?
प्रश्नकर्ता : वहाँ प्रतिक्रमण हो ही जाता है।
दादाश्री : उसके तो निरंतर प्रतिक्रमण करते रहने पड़ेंगे। अपने को तो समझ में आता है कि अंदर यह बीज पड़ा हुआ है, अत: यह तो बड़ा जोखिम है। यह विषय तो बहुत जोखिमवाली चीज़ है। सामनेवाला व्यक्ति जहाँ-जहाँ जाए, वहाँ आपको जाना पड़ेगा। फिर सामनेवाला व्यक्ति बेटा बनकर आएगा। यानी इतना बड़ा जोखिम खड़ा हो जाता है। तभी तो विषय के लिए हम यहाँ बहुत सख्ती रखते हैं न! अन्य सबकुछ चलाया जा सकता है, लेकिन विषय नहीं चलाया जा सकता।
यह तो अक्रम विज्ञान है। इसलिए इतना ही जोखिम रखा है। वर्ना जैनधर्म ने तो बाकी सब को भी जोखिम ही कहा है। सबको जोखिम कहेंगे तो कैसे अंत आएगा? फिर लोग क्या कहेंगे कि, 'मुझे आपके साथ धंधा ही नहीं करना है, सौदा ही नहीं करना।' लेकिन यदि एक ही चीज़ रही तो कहेंगे कि, 'सब सहन कर लूँगा, लेकिन यदि यही एक चीज़ है न,