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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
यह रोग है, तब तक हमें परहेज में क्या करना चाहिए ? कि उपयोग जागृत रखना चाहिए। ऐसा दिखे कि तुरंत ही शुद्धात्मा देख लो। ऐसी भूल हुई, उसे ‘देखतभूली' कहते हैं । पुरुष को पुरुष का रोग नहीं होगा, तो ‘यह स्त्री है' ऐसा नहीं दिखेगा और स्त्री को स्त्री का रोग नहीं होगा, तो ‘यह पुरुष है' ऐसा नहीं दिखेगा। सभी में आत्मा दिखेगा।
प्रश्नकर्ता : इतनी जागृति नहीं रह पाती न ?
दादाश्री : जागृति नहीं रहेगी, तो मार ही खानी पड़ेगी। यह ब्रह्मचर्य तो जिसे बहुत जागृति रहे, उसीके काम का है।
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क्रमिक मार्ग में तो स्त्री को पास में रखते ही नहीं, क्योंकि वह बहुत बड़ा जोखिम है। स्त्री, वह पुरुष के लिए जोखिम है। पुरुष, वह स्त्री के लिए जोखिम है। लेकिन मेरा कहना है कि इसमें स्त्री का दोष नहीं है, स्त्री तो आत्मा है, दोष तेरे स्वभाव का है।
दादाजी के अलावा, नहीं छू सकता कोई भी
हम तो, आप जो माँगोंगे वह देंगे। क्योंकि हम में, हम अखंड ब्रह्मचारी हैं, जिन्हें ज्ञान होने के बाद अट्ठाईस साल से आज तक कभी भी स्त्री का विचार ही नहीं आया । इसीलिए हम स्त्री को छू सकते हैं न । वर्ना स्त्री को छूआ नहीं जा सकता। पचास हज़ार लोग हैं अपने यहाँ, लेकिन उनमें से एक को भी ऐसी छूट नहीं है कि स्त्री को आप छू सकते हो, क्योंकि उस स्पर्श का गुण बहुत ही विषम है। सभी ऐसे होते हैं, ऐसा नहीं है। लेकिन हो सके तब तक उसमें नहीं पड़ना चाहिए। हमें छूट है। क्योंकि हम तो किसी भी जाति में नहीं हैं । मैसक्युलिन या फीमेल या ऐसी किसी जाति में नहीं हैं। हम जाति से परे हो गए हैं ।
स्त्री-पुरुषों को एक-दूसरे को छूना नहीं चाहिए, बहुत जोखिम है। जब तक पूर्ण नहीं हुए हैं तब तक नहीं छू सकते, वर्ना यदि एक भी परमाणु विषय का भीतर प्रवेश कर गया तो कितने ही जन्म बिगाड़ देगा । हम में तो विषय का एक भी परमाणु नहीं है । एक भी परमाणु बिगड़े तो तुरंत