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विषयी-स्पंदन, मात्र जोखिम
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है, यह तत्काल इफेक्टिव है, इसलिए यहाँ पर इस बारूदखाने से बहुत दूर रहने जैसा है। इतना डर तो रखना चाहिए न? लोग विषयों से नहीं डरते और साँप से डरते हैं। अरे! साँप से क्यों डरते हो? साँप के सामने हिताहित देखते हैं, तो यहाँ विषय में हिताहित क्यों नहीं देखते? विषय में इस तरह लापरवाह नहीं हो जाना चाहिए। पुलिसवाला पकड़कर करवाए, उसके जैसा होना चाहिए। यहाँ पर विषयों का साइन्स समझ लेना है। यह प्रत्यक्ष ज़हर है, ऐसा ज्ञान हाज़िर रहना चाहिए।
आत्मा सदैव ब्रह्मचारी अब अन्य क्या कमी लगती है, वह बताओ। प्रश्नकर्ता : इन षड्रिपुओं में से काम को जीतना मुश्किल है।
दादाश्री : हाँ। काम को जीतना नहीं है। काम को हराना भी नहीं है और जीतना भी नहीं है।
प्रश्नकर्ता : तो फिर उसका क्या करना होता है?
दादाश्री : आप तो ब्रह्मचारी ही हो। यह तो चंदूभाई में जो डिस्चार्ज भाव हैं, जो भरा हुआ माल है, उसका निकाल कर देना है। हमने एक टंकी में माल भरा हो तो फिर हमें निकाल तो करना पड़ेगा न, या नहीं करना पड़ेगा?
प्रश्नकर्ता : करना पड़ेगा।
दादाश्री : जैसा भरा हुआ होगा, डामर जैसा भरा होगा तो डामर जैसा। शुद्ध पानी होगा तो शुद्ध पानी, दूध भरा होगा तो दूध। जैसा भरा होगा, उसका निकाल तो करना पड़ेगा न!
प्रश्नकर्ता : तो इसे सैद्धांतिक रूप से देखा जाए तो, यह ब्रह्मचर्य भी निकाली चीज़ों में जाएगा?
दादाश्री : आत्मा निरंतर ब्रह्मचारी ही है, आत्मा को अब्रह्मचर्य हुआ ही नहीं। ब्रह्मचर्य तो पुद्गल का ही झंझट है। इसलिए जब आप चंदूभाई