________________
१९२
विषयी-स्पंदन, मात्र जोखिम
यदि चौथे आरे में मैंने यह ज्ञान दिया होता तो मुझे ऐसे सावधान नहीं करना पड़ता। यह पाँचवाँ आरा (कालचक्र के बारहवें हिस्से में से एक भाग) बहुत कठिन आरा है, बहुत वक्र आरा है, बहुत वक्रतावाला है। वक्रता यानी कपट । कपट का संग्रहस्थान ही कह दो न! अतः हम क्या कहते हैं कि स्त्री का मिलना, वह जोखिम नहीं है। लेकिन आँखों का आकर्षित होना, जोखिम है। इसलिए उसका प्रतिक्रमण करके केस खारिज कर देना। शास्त्रकारों ने भी कहा है कि नजरें नीची करके चलना।
प्रश्नकर्ता : विषय के प्रति जो लगाव है, आकर्षण के लिए जो लगाव है, वह पकड़ता है या मिकैनिकल क्रिया पकड़ती है?
दादाश्री : वह लगाव पकड़ता है, क्रिया नहीं पकड़ती। इसीलिए हम कहते हैं न कि शादी की है तो उसका निकाल कर। उसमें हर्ज नहीं है, लेकिन जो लगाव है, वह पकड़ता है। इसीलिए हमने कहा है कि विषय विष नहीं है। विषयों में निडरता, वही विष है। 'गलत हुआ है' मन में हमेशा ऐसा तो रहना ही चाहिए। बाकी निकाल करो न! निकाल करने में हर्ज नहीं है, लेकिन लगाव तो रहना ही नहीं चाहिए। लगाव के प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान करना।
नियम कैसा है कि भीतर जो परमाणु होते हैं, वे ही बाहर आ मिलते हैं। भीतर खुद में नाच शुरू हो जाए, उसके बाद नाचनेवाली दिखाई देती है। यानी पहले खुद में ही शुरू हो जाता है, उसके बाद सभी ओर दिखाई देता है। यों ही तो कुछ होता ही नहीं है न? यदि खुद में माल भरा हुआ होगा, तभी आ मिलेगा, वर्ना मिलेगा ही नहीं न?
विषय का जाल तो देखो पेड़ पर आम दिखाई दें और अगर लोगों ने देखे, तो रात में आकर ले जाते हैं। उसी प्रकार कोई स्त्री किसी को पसंद आ जाए, तो रात को आकर उसे उठा ले जाते हैं। तो ये सब भी आम ही हैं न? जो भोग लिए जाते हैं, वे सभी आम हैं। अच्छे किस्म के हाफूस के आम हों, लेकिन