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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
को ब्रह्मचारी बनाओगे, उस दिन आपका निबेड़ा आएगा। वर्ना मुक्त नहीं होने देगा। और कैसा ब्रह्मचारी? पत्नी होने के बावजूद ब्रह्मचारी रहे तो उसे बहुत चिंता नहीं रहेगी। यह ब्रह्मचर्य का भाव है न, वह तो अंतिम जन्म में सारे भाव छूट जाते हैं। उसके लिए कुछ सौ-दो सौ जन्म पहले से कसरत नहीं करनी पड़ती। अंतिम जन्म में छूट जाता है सबकुछ। लेकिन जिसे मुक्त होना है, उसे इसके भरोसे नहीं रहना है। अपने आप ऑटोमेटिक चला जाए, तो अच्छी बात है। क्योंकि वह न तो पुद्गल के लिए ज़रूरी चीज़ है और न ही आत्मा के लिए ज़रूरी चीज़ है। कल्पित रूप से खड़ी हो चुकी चीज़ है यह।
इसलिए आपको चंदूभाई से कहते रहना है। आपको कभी-भी उस रूप को सिर पर नहीं लेना है। आप चंदूभाई से कहते रहना कि, 'यह पॉइज़न है! आपको जैसा अनुकूल आए, वैसा करो।' आपको उपदेशदाता बनना है। आप खुद तो 'ब्रह्मचारी' ही हो, लेकिन अब यह जो अलग किया हुआ हिस्सा है, वह ऐसा है कि उसे आपको कहना पड़ेगा कि 'यह पॉइज़न है।' अपने ज्ञान में जो भाव है, उसे यह प्रज्ञा तुरंत पकड़ लेती है। यह प्रज्ञा उसे पकड़कर तुरंत अमल में लाती है। बाकी सब चल सके, ऐसा है। क्योंकि विषय को भगवान ने 'रौद्रध्यान' कहा है। शादीशुदा हों, मियांबीवी राज़ी हों, तो उसे भगवान ने रोग नहीं कहा है। क्योंकि उसमें कहाँ गुनाह आया? किसे दुःख दिया? दोनों राजी हों, वहाँ न तो सरकार हस्तक्षेप करती है और न ही नेचर हस्तक्षेप करता है। नेचर को कोई लेना-देना नहीं है। सिर्फ इतना ही है कि उसमें एक ही बार के विषय में अनंत जीव मर जाते हैं। उसका फिर जोखिम आता है, इसलिए उसे 'रौद्रध्यान' कहा है। विषय के जो स्पंदन खड़े होते हैं, उन स्पंदनों में से वापस परमाणु भोगने पड़ते हैं। बाकी, इसमें कोई किसी को आमने-सामने दु:ख देता ही नहीं है। दोनों को आनंद होता है। किसी को दुःख दिया जाए, तभी उसे नैचुरल गुनाह कहा जाता है।
किसी ने ऐसा स्पष्ट रूप से नहीं बताया है, लेकिन यदि स्पष्ट रूप से बताए तो फिर लोग उसका दुरुपयोग करेंगे, ऐसे हैं। इसलिए विषय