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चारित्र का प्रभाव
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'ज्ञान' तो नाटकीय रखे, ऐसा है। राज चला रहा हो, फिर भी नाटकीय रखता है। लेकिन स्त्री परिषह वह तो सबसे बड़ा परिषह है, वह नाटकीय नहीं रहने देता। व्यापार-धंधे बाधक नहीं हैं, स्त्री परिषह बाधक है। स्त्रियाँ बाधक नहीं हैं, स्त्री परिषह बाधक है। स्त्रियाँ तो आत्मा ही हैं। विकारी भाव, वह परिषह कहलाता है, सभी स्त्रियाँ आत्मा ही हैं न? _ 'ज्ञानीपुरुष' को कितना सुंदर दिखाई देता होगा! सभी जगह शुद्धात्मा ही दिखाई देते हैं। हम नौवे गुणस्थानक में से जब दसवें गुणस्थानक में पहुँचे, तब से अरे! अपार सुख का अनुभव किया! उस सुख का एक छींटा भी यदि बाहर गिरे और मनुष्य उसे चखे तो सालभर के लिए परम सुखी हो जाएगा! इस विषय के कारण ही सभी प्रकार की रुकावटें है न। यही महारोग है!