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चारित्र का प्रभाव
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कभी न कभी उसका फल मिलेगा। बाकी की सभी चीज़ों के लिए एतराज़ नहीं है। बाकी सब चीजें हम 'लेट गो' करते हैं । यदि भटकना नहीं हो तो बाकी सभी के लिए एतराज़ ही नहीं है । लेकिन यदि भटकना हो तो खुला ही है न ? जो करना हो वह करे ! लेकिन उसका भयंकर गुनाह लगेगा। जब तक विषय रहे, तब तक आत्मा का स्पर्श हो ही नहीं सकता, कभी स्पर्श हो ही नहीं सकता । इतने में ही सावधान रहने को कहते हैं यह क्या बहुत कठिन है ? कठिन लगता है ? लेकिन यदि मोक्ष में जाना हो तो फिर सब दुरुस्त तो करना पड़ेगा न ? कब तक ऐसे ही चलता रहेगा, पोलम्पोल, ठोकाठोक ? विषय का यदि एक भी विचार आए, तो उसे उखाड़कर तोड़ देना। जो ऐसे तोड़ देता है उसके लिए हम गारन्टी लेते हैं और उसकी गारन्टी दी है । हमारी गारन्टी है, यदि हमारे इस 'ज्ञान' का पालन करोगे तो एकावतार की गारन्टी है ! लेकिन विषय तो होना ही नहीं चाहिए। अन्य सभी कुछ करो । खाओ-पीओ मज़े करो, लेकिन विषय क्यों? विषय तो नर्कगति में ले जानेवाली चीज़ है। आपको ये सब बातें अच्छी लगीं या नहीं ?
प्रश्नकर्ता : अच्छी लगती हैं दादाजी, बहुत अच्छी।
दादाश्री : अत: अपने ज्ञान में इतनी ही सावधानी बरतनी है। अन्य कोई सावधानी नहीं बरतनी ।
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विषय से मुक्ति, वहाँ दसवाँ गुणस्थानक
जिसमें स्त्री को ‘परिग्रह' माना जाता है, उस नौवे गुणस्थानक को पार कर ले तो फिर उसे जोखिम नहीं रहता । नौवा गुणस्थानक पार किया यानी काम हो गया! स्त्री का परिग्रह मन-वचन-काया से बंद हो जाए, तब व्यवहार में दसवाँ गुणस्थानक आता है। जब तक स्त्री परिग्रह पार नहीं किया, तब तक नौवा पार किया, ऐसा नहीं कहा जाएगा । स्त्री का विचार आए, तो भी नौवा पार नहीं कर सकता । विषय का विचार आए तो भी नौवा पार नहीं कर सकता, इसलिए व्यवहार तो आपको उच्च स्तर पर लाना ही पड़ेगा न? निश्चय के साथ-साथ व्यवहार भी ऊपर उठाना है। जब तक